जीवन साथी
श्रीमान जी आज अत्यधिक प्रसन्न नजर आ रहे थे, आते भी क्योँ ना, आखिर उनके इकलौते पुत्र के रिश्ते हेतु मेहमान जो आए हुए थे। इकलौता पुत्र वो भी महानगर मेँ सरकारी चिकित्सक।
औपचारिकता के पश्चात मेहमान महोदय ने कहा,-"आपने हमारी पुत्री को तो देखा ही है।"
श्रीमान जी ने तुरंत कहा,-"हां, हां, सुंदर है, सुशील है।"
तभी अंदर से श्रीमती जी की आवाज आई।
"मैँ अभी आया।"-कह कर श्रीमान जी अंदर चले गए।
"क्या बात है ?"- श्रीमान जी ने श्रीमती जी से पूछा।
"जल्दी हाँ मत कर देना।"- श्रीमती जी ने कहा,-"मेरे मायके से फोन आया था, लङकी का बाप सरकारी पद पर है, उम्मीद है खूब दहेज देँगे।"
"अरे, तुम चिँता मत करो"-श्रीमान जी ने कहा,-"मै बिना दहेज शादी करने वाला नहीँ।"
दोनोँ के चेहरोँ पर मुस्कान नृत्य कर उठी।
श्रीमान जी मेहमानोँ के पास आकर बैठ गए।
श्रीमान जी ने कहा,-"कल ही एक जगह से रिश्ता आया था, लङकी तो सुंदर थी,पर.......।"
तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी।
"मै देखता हूँ, कौन है ?"-कह कर श्रीमान जी ने दरवाजा खोला, सामने उनका पुत्र खङा था। साथ मेँ एक नवपरिणिता थी।
"नमस्ते पिताजी।"-पुत्र ने कहा।
"अरे! तुम" श्रीमान जी ने कहा,-"अचानक कैसे आना हुआ ? और ये साथ मेँ कौन है।"
"पिताजी, मैने शादी कर ली।"-पुत्र ने कहा।
"क्या ?" श्रीमान जी किंकर्तव्यविमूढ।
"आपको दहेज चाहिए था, पर मुझे एक अच्छा जीवन साथी।"-पुत्र ने कहा,-"प्रश्न मेरे जीवन का था, अत: निणर्य भी स्वयं ही ले लिया। मुझे धन की चाहत नहीँ। एक समझदार जीवन साथी धन से कहीँ अधिक महत्वपूर्ण होता है।"
इतना कह कर पुत्र व पुत्रवधु घर मेँ प्रवेश कर गए।
-हम सब साथ साथ ( जु.-अग.-2012) नई दिल्ली से प्रकाशित।
श्रीमान जी आज अत्यधिक प्रसन्न नजर आ रहे थे, आते भी क्योँ ना, आखिर उनके इकलौते पुत्र के रिश्ते हेतु मेहमान जो आए हुए थे। इकलौता पुत्र वो भी महानगर मेँ सरकारी चिकित्सक।
औपचारिकता के पश्चात मेहमान महोदय ने कहा,-"आपने हमारी पुत्री को तो देखा ही है।"
श्रीमान जी ने तुरंत कहा,-"हां, हां, सुंदर है, सुशील है।"
तभी अंदर से श्रीमती जी की आवाज आई।
"मैँ अभी आया।"-कह कर श्रीमान जी अंदर चले गए।
"क्या बात है ?"- श्रीमान जी ने श्रीमती जी से पूछा।
"जल्दी हाँ मत कर देना।"- श्रीमती जी ने कहा,-"मेरे मायके से फोन आया था, लङकी का बाप सरकारी पद पर है, उम्मीद है खूब दहेज देँगे।"
"अरे, तुम चिँता मत करो"-श्रीमान जी ने कहा,-"मै बिना दहेज शादी करने वाला नहीँ।"
दोनोँ के चेहरोँ पर मुस्कान नृत्य कर उठी।
श्रीमान जी मेहमानोँ के पास आकर बैठ गए।
श्रीमान जी ने कहा,-"कल ही एक जगह से रिश्ता आया था, लङकी तो सुंदर थी,पर.......।"
तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी।
"मै देखता हूँ, कौन है ?"-कह कर श्रीमान जी ने दरवाजा खोला, सामने उनका पुत्र खङा था। साथ मेँ एक नवपरिणिता थी।
"नमस्ते पिताजी।"-पुत्र ने कहा।
"अरे! तुम" श्रीमान जी ने कहा,-"अचानक कैसे आना हुआ ? और ये साथ मेँ कौन है।"
"पिताजी, मैने शादी कर ली।"-पुत्र ने कहा।
"क्या ?" श्रीमान जी किंकर्तव्यविमूढ।
"आपको दहेज चाहिए था, पर मुझे एक अच्छा जीवन साथी।"-पुत्र ने कहा,-"प्रश्न मेरे जीवन का था, अत: निणर्य भी स्वयं ही ले लिया। मुझे धन की चाहत नहीँ। एक समझदार जीवन साथी धन से कहीँ अधिक महत्वपूर्ण होता है।"
इतना कह कर पुत्र व पुत्रवधु घर मेँ प्रवेश कर गए।
-हम सब साथ साथ ( जु.-अग.-2012) नई दिल्ली से प्रकाशित।
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