शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

पंचायत आम चुनाव- 2020

ग्राम पंचायत आम चुनाव-2020
ग्राम पंचायत-अजारी, पिण्डवाड़ा, सिरोही, राजस्थान

जीवन में चुनाव संबंधित नये नये अध्याय जुड रहे हैं। सर्विस को तीन वर्ष भी न हुयेऔर तीन बार अलग-अलग चुनाव और चुनाव मत गणना का कार्य संपादित भी किया।
लोक सभा चुनाव, विधान सभा चुनाव फिर माउंट आबू नगर पालिका चुनाव मतगणना और सन् 2020 के आरम्भ में जनवरी में ग्राम पंचायत चुनाव का एक और अनुभव जीवन में शामिल हो गया।
       सन् 2020 में राजस्थान में ग्राम पंचायत के चुनाव थे। ये चुनाव तीन चरण में थे। इस चुनाव के दौरान कुछ नये अनुभव के साथ-साथ बहुत कुछ नया साथ जुड़ता चला गया।
       प्रत्येक चुनाव में तीन ट्रेनिंग होती है पर इस चुनाव में मात्र दो ट्रेनिंग दी गयी लेकिन जरूरत तीन ट्रेनिंग की ही थी। दूसरी ट्रेनिंग भी वास्तव ट्रेनिंग नहीं होती यह चुनाव पर जाने से पहले चुनाव संबंधित समस्त सामग्री एकत्र करने और रवाना होने का दिन होता है उस दिन चुनाव अधिकारी आशीर्वाद और सफलता की प्रार्थना करते हैं।
      चुनाव ट्रेनिंग की एक-एक कर जब सूचना आ रही थी तो मेरे विद्यालय में जिन साथियों की चुनाव में डयूटी लगनी थी उनको सूचना प्राप्त हो गयी थी लेकिन एक मैं ही बचा हुआ था। चुनाव से बचने वाले को भी एक अजीब सी खुशी होती है और उस पर अगर चुनाव ग्राम पंचायत के हो तो ज्यादा खुशी होती है। लेकिन मेरे साथ एक ट्रेजडी यह हुयी की किसी अनजान 
साथी ने चुनाव डयूटी में से अपना नाम हटवा कर वहाँ मेरा नाम जुड़वा दिया। और इस तरह से मेरी खुशी वाष्प की तरह गायब हो गयी।
     दिनांक 05.01.2020 को हमारे विद्यालय के तीन साथी बाबू सिंह जी (प्राध्यापक इतिहास), हुकम चंद नामा (व्याख्याता वाणिज्य) और मैं (गुरप्रीत सिंह, व्याख्याता हिन्दी) और हमारे साथ बालिका विद्यालय के जमुना लाल जी यादव थे। हम एक ट्रेनिंग करके आये थे।
05.02.2020- ट्रेनिंग 
प्रशिक्षण के पश्चात चुनाव के तीन चरण थे। क्रमशः ....29 जनवरी तक। प्रथम‌ दो चरणों में मेरी डयूटी नहीं आयी और फिर तीसरे चरण की डयूटी के लिए एक एक कर के साथी मित्रों के नाम आते गये पर मेरा नाम कहीं भी न था। मुझे पूर्व विश्वास हो चला था की इस बार चुनाव में जाने से बच जायेंगे और मैं‌ इन दिनों की नीतियां बनाता रहा की मुझे क्या करना है।
       26 जनवरी 2020 को विद्यालय में गणतंत्र दिवस का उत्सव था। एक उमंग और जोश का दिन था। उसी दिन शाम लगभग तीन बजे पुनीत विश्नोई सर का वाटस एप संदेश आया की आपकी डयूटी आ गयी है। उन्होंने डयूटी प्रपत्र की फोटो भी भेज दी थी।
इतने दिनों का उत्साह, खुशी एक झटके से खत्म हो गयी। जब यह उम्मीद थी की इस बार चुनाव में जाना नहीं होगा और उस पर अचानक से ऐसी खबर आ जाना बहुत दुखदायी सा होता है।
       बाकी दो चुनावों से यह चुनाव अलग है। इसके दो कारण है। पहले दोनों चुनाव लोक सभा और विधान सभा के दौरान में PO-1 रहा हूँ, इस पद पर मेरा काम सिर्फ मेरा होता है। लेकिन जब 26 जनवरी को जो सूचना मिली उसके अनुसार मुझे इस चुनाव में P.O. (पीसाठीन अधिकारी) बनाया गया था। अर्थात् मैं अपनी चुनाव टीम का प्रमुख था और चार व्यक्ति मेरे अधीन थे।
      तृतीय चरण के लिए 21 जनवरी तक डयूटियां लग गयी थी लेकिन मेरी डयूटी 26 जनवरी को आयी। तो कहीं न कहीं तो कुछ गड़बड़ अवश्य थी।
      29 जनवरी को चुनाव थे। ग्राम पंचायत के चुनाव के दौरान तीन दिन ग्राम पंचायत पर ही ठहरना पड़ता है। 28 जनवरी की सुबह सात बजे हम‌ घर से रवाना हुए। हमारे विद्यालय से पुनीत विश्नोई(व्याख्याता,कार्यवाहक प्राधानाचार्य), पंकज मकवाना (प्राध्यापक) देलवाड़ा स्कूल से अजय पंवार जी (गणित) और माउंट के एक और शिक्षक मित्र सूरज जी। हम पांच सदस्य पंकज जी की गाड़ी (maruti celerio) से रवाना हुए और आबू रोड़ से पुनीत जी को साथ लिया।
      9 बजे से कार्य आरम्भ था। चुनाव अधिकारी मंच पर एक एक कर उपस्थित हो रहे थे और उनके सामने चुनाव कार्मिक बैठे थे। मैं भी अपनी निर्धारित सीट पर जब पहुंचा तो मेरे दो साथी वहाँ पहले से उपस्थित थे।  
सिरोही जिला कलैक्टर सुरेन्द्र सोलंकी जी आशीर्वचन देते हुए।
यहाँ पहुंच कर मुझे पता चला की मेरी जगह पर पहले कोई दलीप शर्मा नाम‌क व्यक्ति था लेकिन उसने अपनी डयूटी कैंसिल करवा ली तो फिर मेरा नंबर आया। ऐसा एक प्रकरण टीम में और भी रहा। इस दौरान हमारे साथ PO.-2 जो था वह भी प्रशिक्षण खत्म होने के पश्चात अपनी डयूटी रद्द करवा कर निकल गया और उसकी जगह अरूण कुमार जी आये।
हमारे टीम युवा थी। हमें पिण्डवाड़ा तहसील में अजारी नामक ग्राम पंचायत मिली थी जहां हमें सरपंच,पंच और उप सरपंच के चुनाव करवाने थे।‌ चुनाव संबंधित सामग्री प्राप्त करने के पश्चात जब हम निर्धारित बस में बैठे तो पता चला की उस पंचायत के लिए सात पोलिंग पार्टियां जा रही हैं। दो बसों में सवार होकर हम‌ अपने निर्धारित मार्ग पर चले। हां, चुनाव पार्टी को जो रोड़ मैप दिया जाता है या जो मार्ग बताया जाता है उसे उसी मार्ग पर ही चलना होता। रास्ते में बचे 'चुनाव चैक पोस्ट' पर उसे अपनी उपस्थिति देनी होती है और यही क्रम आते वक्त भी रहता है।
       गांव में दो उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यालय हैं एक लड़कों का और एक बालिका। गांव की जनसंख्या का अनुमान यही से लगाया जा सकता है दो उच्च माध्यमिक राजकीय विद्यालय और पोलिंग के लिए सात पार्टियां। हमारे पास कुल 926 मतदाता थे। पार्टी सख्या 48,49,50 और 51 एक विद्यालय में रुकी और पार्टी संख्या 52,53 और 54 बालिका विद्यालय में।

    दिनांक 28.02.2020 की रात को हमें आवश्यक कार्य सम्पन्न करने थे, क्योंकि आगामी चुनाव के दिन समय नहीं मिलता।
हमारी टीम- 

PO-   गुरप्रीत सिंह
PO1- विनोद कुमार
PO2 - अरूण जी
PO3- दीपक शर्मा
PO4- सौरभ

      टीम में अरुण जी को छोड़ कर बाकी युवा ही थे। लेकिन कार्य की दृष्टि से देखें तो विनोद जी सबसे ज्यादा सक्रिय व्यक्ति रहे। वहीं चुनाव के वक्त पोलिंग बूथ पर सौरभ की सक्रियता वास्तव में प्रशंसनीय रही।
     दिनांक 29.02.2020 की सुबह आज बजे चुनाव आरम्भ थे जो शाम पांच बजे तक चलने थे। चुनाव के दौरान हमें कोई विशेष परेशानी नहीं आयी क्योंकि एक तो हमारी टीम सक्रिय और दूसरा आवश्यक कार्य हमने रात को ही निपटा लिया था। चुनाव के दौरान जो समस्या आयी वह थी जनता की।
      एक तो एक समय दो मत (वोट) डालने थे एक सरपंच का जो मशीन (EVM) से डालना था और दूसरा वार्ड पंच का जो मतपत्र से डालना था। पंचायत की जनसंख्या के दृष्टि से अधिकांश अशिक्षित थे, और उसमें से वृद्ध व्यक्ति तो दृष्टिदोष से पीडित भी थे। अधिकांश लोगों को यह भी पता नहीं था की वोट कहां डालना था उनको‌ समझाना वास्तव में बहुत परेशान का काम था।
      कुछ वृद्ध तो ऐसे थे जो मतपत्र को EVM में डालने की कोशिश करते और जब मतपत्र वहाँ न डलता तब पूछते इसको कहां डालें।
      यह समस्या पूरे दिन बनी रहीं। इसी समस्या को देखकर सौरभ ने मुझसे कहा की "सर,आप एक बार अपना काम छोड़ दीजिएगा और लोगों को थोड़ा समझाये की EVM का बटन कैसे दबाना है और मतपत्र कहां डालना है।"
हालांकि दोनों के लिए अलग-अलग जगह तय थी।

वह रात एक बजे का खाना
       दिनांक 29.02.2020 को पंच-सरपंच की वोटिंग शाम पांच बजे खत्म हो गयी लेकिन मशीन सील करना और आवश्यक कागजात कार्यवाही में सात बजे गये। उसके पश्चात सरपंच और वार्ड पंच का परिणाम भी देना था।
लगभग 7:30 हम स्ट्राॅग रूम पहुंचे जहा अन्य पार्टियां भी उपस्थित थी। विद्यालय का मुख्य गेट बंद कर दिया गया और पुलिस सुरक्षा के लिए तैनात कर दी गयी। सरपंच पद के प्रत्याशी स्ट्राॅग रूम में उपस्थित थे। लगभग आठ बजे सरपंच की EVM से गणना आरम्भ की और तीस मिनट से भी कम समय में परिणाम सुना दिया गया।
श्रीमति.....को सरपंच घोषित किया गया। जो की एक अशिक्षित महिला थी जिसे अपने हस्ताक्षर तक करने नहीं आते थे।
      PRO महोदय जब उसे सरपंच पद की शपथ दिला रहे थे तो उसके लिए यह काम बहुत ही मुश्किल साबित हो रहा था। उसे शब्द समझ में नहीं आ रहे थे लेकिन जैसे-तैसे उसे शपथ दिला कर सरपंच का प्रमाण पत्र दिया।
विनोद जी में चुटकी लेते हुए कहा की -"यह लोकतंत्र है जहां शिक्षित लोग एक अशिक्षित के लिए चुनाव करवाते हैं और जनता एक ऐसे आदमी को चुनती है जिसे कुछ समझ में ही नहीं आता।"
खैर हम वहाँ अपने कर्तव्य ला निर्वाह कर रहे थे ज्यादा टिप्पणी उचित न थी।
      सरपंच परिणाम के पश्चात वार्ड पंच के परिणाम घोषित करने थे। यह इसलिए मुश्किल थे की यह मतपत्र थे चुनाव थे। सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी मतपेटी लेकर बैठ गयी। हमारे पास वार्ड नंबर चार और पांच था। हमसे पहले वाली पार्टी के पास वार्ड नंबर एक, दो और तीन था।
सबसे पहले हमने वार्ड चार और पांच के मतपत्र अलग-अलग किये और फिर उनको प्रत्याशी के हिसाब से जमाना आरम्भ किया।
      वार्ड नंबर चार में मात्र दो प्रत्याशी थे और पांच में चार प्रत्याशी थे। यह समय लेने वाला पर रोचक काम था। हमारे सामने पंच पद के प्रत्याशी बैठे बड़ी उत्सुकता से हमें ताक रहे थे। आखिर उनके भविष्य का निर्णय होने जा रहा था।
हम सात पार्टियों में से तीसरे नंबर पर जिन्होंने अपना परिणाम तैयार कर लिया था। RO उत्तम सिंह जी ने वार्ड नंबर चार और पांच का जब निर्णय सुनाया तो हमारा दिल धड़क रहा था। कारण हमने रिजेक्ट वोट ज्यादा निकाले थे।
जिसका डर था वही हुआ एक हारने वाले व्यक्ति ने कहा "हमें तो आप रिजैक्ट वोट दिखा दीजिएगा।"
मुझे लगा अब समस्या पैदा हो सकती है क्योंकि हारने वाला उन रिजैक्ट वोटों को अलग दृष्टि से देखेगा उसके लिए नियम महत्व नहीं रखते। लेकिन कमाल सौरभ जी ला देखिएगा जिन्होंने उत्तर दिया "वोट दिखाना काम साहब (RO) का है हमारा नहीं, जब वो फ्री होंगे तब देख लेना।"
      कुछ मिनट रूकने के बाद वह व्यक्ति भी चला गया। और हमने चैन की सांस ली। हम अब अपने कार्य से मुक्त थे। मित्र सूरज जी की पार्टी सबसे अंत तक‌ मतगणना में‌ लगी हुयी थी, वे इतना लेट कैसे हुये यह तो खैर पता न लगा।
रात के बारह बज गये और सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। इसलिए हम रात को बस से निकले। अजारी गांव हाईवे पर ही स्थित है लेकिन रात को बारह बजे सब ढाबे और होटल बंद थे।‌ लेकिन इस हाईवे का प्रसिद्ध होटल बाबा रामदेव खुला मिलता है। हम वहाँ पहुंचे और खाना खाया। खाना खाने के कुछ समय पश्चात चाय का आनंद लिया। यह रात का खाना हमें याद रहेगा। लगभग एक बजे के बाद हम होटल से वापिस रवाना हुये।
रात को अभी फोन देखना बाकी था। मैं और सौरभ मोबाइल चला रहे थे।
"अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है।"
" अभी रजाई में घुसकर फोन चलाना बाकी है।" -दीपक जी ने चुटकी ली तो सब फोन बंद कर सो गये।


दिनांक- 30.02.2020

      इस दिन पद और सरपंच मिल कर उप सरपंच का चुनाव करते हैं। मेरी इच्छा थी इस चुनाव को देखने की लेकिन कागजी कार्यवाही इतनी थी की सुबह नहाने का समय भी नहीं मिला। किसी भी चुनाव में बड़ी परेशानी आवश्यक और अधिकांश अनावश्यक (?) परिपत्रों को भरने में मुश्किल आती है। अक्सर समझ में ही नहीं आता की किस लिफाफे में कौन कौन से प्रपत्र डालने हैं हालांकि सभी लिफाफों के उपर पूरी जानकारी दी गयी होती है। इसलिए अकसर साथ वाली टीम‌ से या अन्य साथी मित्रों से फोन पर संपर्क किया जाता है। मैंने मनोज जी से संपर्क लिया और वहीं सूरज जी हमारे पास आते थे।

सिरोही वापसी
     हम लगभग दो बजे (PM) सिरोही पहुंचे। यहाँ अपनी चुनाव सामग्री जमा करवानी थी। एक हाॅल के अंदर सब व्यवस्था थी। अलग-अलग तीन काउंटर बने थे।
     सबसे पहले EVM मशीन जमा करवानी थी और उसके साथ कुछ प्रपत्र भी। जैसे ही हम EVM जमा करवाने लगे तो एक कार्मिक ने कहा-" सर, मशीन पर टैग होना आवश्यक है। पहले मशीन पर टैग लगायें।"
मैं और विनोद जी वापस हुये, हाथ में पकड़े प्रपत्र भी सब व्यस्त हो गये। सील और टैग लगाकर पुनः मशीन जाम करवाने गये तो एक और समस्या पैदा हो गयी।
"वार्ड पंच वाला प्रपत्र जाम करवायें।"
अब अभी जगह ढूंढ लिया पर वह प्रपत्र न मिला। एक एक कागज, एक एक फाइल, एक एक जेब मैंने देख ली पर वह प्रपत्र पता नहीं कहां चला गया।
      मैं हैरान और सब परेशान। सबको घर जाने की जल्दी थी पर यहाँ तो अब लगता था कहीं जाना संभव नहीं। अचानक मेरे दिमाग में एक विचार आया की एक औए भी प्रपत्र था जिसमें मतों का प्रतिशत लिखा होता है, वह भी कहीं नजर नहीं आ रहा।
     मैंने सबको यह बात बताई लेकिन किसी को उस प्रपत्र का पता ही नहीं था, तो कौन 'हां' करता।
"सर, कागज तो आपको मैंने आपको दे दिये थे, आपने कहां रख दिये?"- विनोद ने कहा।
" वापस उसी गांव चल कर देखते हैं, आयद कमरे में रह गये हों?"- सौरभ का सुझाव था।
"नहीं, मुझे अच्छी तरह से पता है, वहाँ कोई भी कागज नहीं रहा। चलो उस कागज को छोड़ो लेकिन 'प्रतिशत' वाला तो मुझे अच्छी तरह से पता है मेरे पास था।"- मैंने कहा।
" तो अब कहां चला गया सर, यह आपकी मिस्टेक है।"-विनोद ने पुनः कहा।

        हां, उनकी बात भी सही थी आखिर कागजों को देखना मेरा ही काम था, तो आखिर वह कागज कहां चले गये। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
       एक बार फिर मैं अंदर- बाहर चक्कर लगाकर आया, कुछ ने सुझाव दिया की सील लगे लिफाफे खोलकर देख लो शायद इनमें गलती से न डाल दिये हों। लेकिन मुझे एक बात अच्छी तरह से पता थी की सील लिफाफों में सब कागज सही हैं और जो कागज बाहर चाहिये थे वह बाहर ही थे। अब बाहर थे तो कहां चले गये।
विनोद जी इधर-उधर चक्कर लगाकर आये और खुशी से कागज दिखाकर बोले-"यही कागज थे ना?"
सब के चेहरे खुश हो गये।
"कहां थे कागज?"
" जब आप मशीन पर सील लगा रहे थे, तब आपने मेरे को दिये थे और मैंने अपनी जिंस की बैक जेब में डाल लिये थे।"

     एक नंबर काउंटर से मुक्त होकर जब दो नंबर काउंटर पर पहुंचे तो वहाँ भी एक समस्या आ गयी। वहाँ एक लिफाफा नहीं मिला।
      सब लिफाफे एक बैग में थे। लेकिन अकस्मात एक लिफाफा तरूण जी को नहीं मिला, और जब वहाँ से हटकर पुनः देखा तो वह लिफाफा बैग में ही था। अब एक बार फिर दो नंबर काउंटर की लाइन में जा लगे।
शेष बची सामग्री काउंटर नंबर तीन पर जमा करवा कर और O.D. (Official Duty) ली,मैंने अपने हस्ताक्षर कर सभी को O.D. दे दी।
      एक सैल्फी और मुस्कान के साथ, भविष्य में कभी‌ मिलने का वायदा करके हम सब विदा हो गये।
पंकज जी की लगातार काॅल आ रही थी। वे कार के पास मेरा इंतजार कर रहे थे।
पंकज जी, पुनीत विश्नोई जी, अजय पंवार जी, सूरज जी और मैं माउंट की तरफ रवाना हो लिये।


 
तलहटी में चाय का स्वाद लेते हुए।