ब्लॉग के क्षेत्र में यह मेरा प्रथम कदम है। समस्त ब्लॉग पढने वाले पाठकों मेरा नमस्कार।
सर्वप्रथम प्रस्तुत ‘‘धर्म’’ पर है मेरे विचार एक कविता और लधुकथा के माध्यम से की वर्तमान में धर्म का स्वरूप क्या है,और क्या होना चाहिए।
अगर धर्म शब्द की व्याख्या की जाए तो यह शब्द जितना छोटा है इसकी व्याख्या उतनी ही बड़ी है। फिर भी संक्षेप में कुछ कहना हो तो ‘‘अहिंसा परम धर्म है।’’ अर्थात मन,वचन और कर्म से भी हिंसा नहीं करनी चाहिए,और ना ही हिंसा का समर्थन करना चाहिए।
कुछ शाब्दिक,तकनीकी गलतियां है,जो धीरे धीरे दूर होंगी।
मैं उन मित्रों का धन्यवाद करता हॅू,जिन्होने मेरी इस ब्लॉग में मदद की है।
धन्यवाद।
गुरप्रीत सिंह
राजस्थान