मंगलवार, 16 सितंबर 2014

दीवारेँ







निरंतर उठती
बनती, बढती दीवारेँ
देती हैँ सुरक्षा
प्राकृतिक-अप्राकृतिक विपत्ति से
तब अच्छी लगती हैँ दीवारेँ।

धीरे-धीरे ह्रदय मेँ पनपती
ईर्ष्या, द्वेष की दीवारेँ
बाँटती मानवता को
धर्म, जाति और राजनीति की दीवारेँ
यूँ पलती-बढती
अच्छी नहीँ लगती दीवारेँ।

टूटती, फूटती, गिरती
कच्ची-पक्की दीवारेँ।
पर मुश्किल हो जाती है
गिरानी दिलोँ की दीवारेँ।।
 
 -अभिनव प्रयास(अक्टु.-दिस.-2012)अलीगढ, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित।

जीवन



जीवन है सुख दुख का दरिया
लहरं जिसमें आती जाती,
नांव  किनारे वही है लगती
जो लहरों से है टकराती।


फूल सा है यह जीवन
खिलता और मुरझाता,
सार्थक करता वही जीवन को
जो सुकर्म सुगंध है बिखराता।


प्रेम पवित्र से ही जीवन
मधुमय बन जाता है,
सत्य,अहिंसा और धर्म से
जीवन श्रृंगारित हो जाता है।
  
जीवन का अनवरत क्रम
  
हार-जीत और खोना-पाना,
परहित उत्सर्ग है मानवता
सुख-दुख में सबका साथ निभाना।


जीवन के महासमर में
संघर्ष हि पार लगाता है,
परिश्रम और धैर्य से
मानव विजयी बन जाता है।।

   

याद



जब-जब मैँ उदास होता हूँ,
तब-तब याद आते हैँ,
वो हसीन पल
जो तुम्हारे साथ बीते थे।
आँखोँ मेँ तैर जाती है
तुम्हारी हवा सी चंचल छवि।

तब बरबस होठोँ पर
थिरक उठती है स्निग्ध मुस्कान
उठ जाते हैँ दुख के बादल।

तुम पास नहीँ हो
पर तुम्हारी याद
सीने से लगी रहती है
जो हर दुख मेँ देती है
एक मधुर सांत्वना।।

अविराम साहित्यिकी(दिस.-2011) हरिद्वार, उत्तराखण्ड से प्रकाशित।

विश्वास




 वृद्व पुजारी की आंखें सहसा खुल गई।उन्हें लगा मन्दिर में कहीं कोइ है। रात्रि का अन्तिम पहर। ‘कोई है या भ्रम है’’ पुजारी निर्णय न कर पाया।मोमबती जलाई, रोशनी में पुजारी के चेहरे पर अनुभव की रेखाएं चमक उठी।
 मोमबती लिए वे मन्दिर के उस कक्ष की तरफ बढ़ चले,जहा भगवान की मूर्ति स्थापित थी। पुजारी ने धीरे से कक्ष का दरवाजा खोला, मोमबती के प्रकाश से कक्ष प्रकाशित हो उठा। पुजारी ने देखा, एक क्षीणकाय व्यक्ति दान पेटी खोलने का प्रयास कर रहा है,उसी की रह रह कर ध्वनि उठ रही है।
 भगवान की मूर्ति के चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान विराजित है। क्षीणकाय व्यक्ति रोशनी से भयभीत हो कर पीछे की तरफ मुड़ा तो दरवाजे पर वृद्व पुजारी शांत मुंद्रा में खड़े थे।

 वह व्यक्ति पुजारी के चरणों में गिर पड़ा,-‘‘मुझे क्षमा करे’’

 पुजारी ने कहा,-‘‘क्षमा तो उस भगवान से मांगो, जो सर्वदाता है।’’
 ‘‘मेरे साथ आओ।’’-पुजारी ने कहा और वापस चल पड़े। 
 वह व्यक्ति थके से कदमों से पुजारी के पीछे उनके कक्ष में पहुंचा।
 वृद्व पुजारी ने उस व्यक्ति को रूपये देते हुए कहा,-‘‘ये रूपये लो।इस कक्ष में जो वस्तु तुम्हे चाहिए ले जा सकते हो।’’
 उस व्यक्ति ने विस्मय से कहा,-‘‘रूपये तो में वहीं से भी निकाल रहा था।’’
 पुजारी ने उतर दिया,-‘‘वह सम्पति जनता की थी,यह मेरी निजी सम्पति है।अगर वहॉं चोरी हो जाती तो जनता का भगवान से विश्वास खत्म हो जाता।ईश्वर लोगों का अन्तिम विश्वास है।’’
 क्षीणकाय व्यक्ति पश्चाताप की मुद्रा में बोला,-‘‘पुजारी जी,मुझे क्षमा करें।मैं अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु न जाने कितने लोगों का विश्वास तोड़ रहा था और एक आप है जो लोगों का विश्वास रखने के लिए अपना सब कुछ दे रहे हो। आप धन्य हैं,जिन्होने मुझे नया रास्ता दिखाया।’’
 वह व्यक्ति अपने अश्रु पोंछता हुआ बाहर निकल गया।पूर्व से सुर्य की लालिमा धीरे-धीरे फैलने लगी।









सोमवार, 15 सितंबर 2014

नास्तिक


             

‘‘यह लडका तो पूर्णतः नास्तिक है’’
‘‘यह तो कभी मन्दिर भी नहीं जाता’’
 नवयुवक के प्रति अक्सर ये टिप्पणियां सुनाइ दे जाती थी
यह सत्य है कि वह नवयुवक  क भी धार्मिक स्थलों पर अपना सिर झुकाने या प्रवचन सुनने नहीं गया।अगर कहीं जाता है, तो वह है, खेल का मैदान।
‘‘खेलने के अतिरिक्त इसे कुछ सूझता ही नहीं। यह तो घोर नास्तिक है’’
एक और टिप्पणी।
एक दिन उस नवयुवक ने इन टिप्पणियों का उतर दे दिया।

एक दिन मन्‍दिर में कथावाचन का कार्यक्रम था लोग कार्यक्रम मे भाग लेने जा रहे थे। वही मन्दिर के पास धूप में एक दुर्बल गाय बीमार पडी थी। दो तीन कुते गाय को घेरे खडे थे। एक दो लोगो ने कुतों को भगाया, कुते फिर आ जाते ।
तभी वह नवयुवक अपने साथियों के साथ वहा से गुजरा तो, उसने गाय  के घावों का उपचार किया, चारे पानी कि व्यवस्था की। उस दिन नवयुवक अपना खेल छोडकर गाय के पास बैठा रहा। 
दूसरी तरफ अब भी लोग मन्दिर मे कथा सुनने जा रहे थे।
                                                  -  गुरप्रीत सिंह         

हस्तरेखा विशेषज्ञ

                                                         
मनुष्य की हमेशा भविष्य जानने की प्रबल जिज्ञासा रही है।इसी जिज्ञासा ने भविष्य दर्शन की अनेक विधियोँ को जन्म दिया, जिनमेँ सबसे सरल विधि है हस्तरेखा देख कर भविष्य बताना।
  वर्तमान मेँ हस्तरेखा देखने वालोँ की कमी नहीँ है।एक बङा सा विज्ञापन पट्ट,विषय संबंधित पुस्तकेँ,हाथ-गले मेँ विभिन्न प्रकार की मालाएँ, मस्तक पर तिलक कर कहीँ भी बैठ जाओ,लोग जरूर आएंगे।
 हस्तरेखा विशेषज्ञ बनने हेतु उच्च शिक्षा भी जरूरी नहीँ,बस बात को घूमा-फिरा कर कहने की कला होनी चाहिए।आगंतुक को सर्वप्रथम दो-चार सामान्य सी बातेँ बता कर प्रभावित कर लेँ,जैसे-नामानुसार राशि, कुछ बातेँ बतायेँ-तुम आदमी तो ईमानदार हो,पर लोग तुम्हेँ धोखा दे देते हैँ,तुम्हारे पास रूपया रुकता नहीँ।अब न तो कोई स्वयं को बेईमान मानता है और रुपया तो आज तक किसी के पास नहीँ रुका।
   अगर हाथ दिखाने वाला विद्यार्थी है तो उसे सरल सा उत्तर देँ, तुम मेहनत तो खूब करते हो पर परिणाम तुम्हारे अनुकूल नहीँ आता।तुम्हारे हाथ मेँ राजयोग है। नौकरी अवश्य मिलेगी।कोई भी विद्यार्थी यह नहीँ कहता कि मैँ मेहनत नहीँ करता, नौकरी के नाम पर वह प्रसन्न होगा।
   अगर नौकरी पेशा व्यक्ति है तो उसे सकारात्मक एवं  नकारात्मक का ऐसा जबरदस्त मिश्रण पिलाएं कि वह पक्का मूरीद बन जाए। तुम्हारा काम तो अच्छा है,पर मालिक थोङा नाराज रहता है। तुम्हारा स्वास्थ्य भी थोङा कमजोर है। शीघ्र ही एक अच्छी खबर सुनने को मिलेगी। मालिक को तो आज तक कोई संतुष्ट नहीँ कर सका और अच्छी खबर बताने वाले को भी पता नहीँ वह बताए क्या।  हवा मेँ तीर, लगे चाहे ना लगे।
कभी घरेलु किस्म की औरतेँ भी हाथ दिखाने आ जाती हैँ, जिनकी समस्याएँ भी वही सदियोँ पुरानी होती है। इनका हाथ देखना अति सरल श्रेणी मेँ आता है, इनके प्रश्न ज्यादा होते हैँ तो दक्षिणा भी काफी मिल जाती है। इन्हेँ सामान्य सा उत्तर देँ,औरत की प्रशंसा एवं परिवार की बुराई के साथ औरत के अस्वास्थ्य का मिश्रण कर देँ।
  सबसे दुखपूर्ण हाथ देखना किसान और मजदूर का है।ऐसे हाथोँ मेँ कभी-कभी रेखाएं भी गायब होती हैँ और प्रश्नोँ मेँ गंभीर रूदन।ऐसे व्यक्तियोँ के प्रश्नोँ का उत्तर मानसिकता पढ कर,सकारात्मक रूप मेँ देना चाहिए ताकि इन्हेँ मानसिक संतुष्टि प्राप्त हो।
  कभी-कभी गंभीर-उलझे हुए मामले भी आ जाते हैँ। उस वक्त सतर्क रहना चाहिए, क्योँकि ऐसे हाथ दिखाने वाले दो-चार हाथ भी दिखा जाते हैँ।
कुछ सामान्य सी बातेँ हमेशा याद रखनी चाहिए,जैसे-धन संबंधी परेशानी होगी, स्वास्थ्य खराब रहेगा, संबंधी धोखा दे सकते हैँ।  लोग हमेशा इन नकारात्मक बातोँ से प्रसन्न रहते हैँ।परंतु सभी बाते नकारात्मक कहना उचित नहीँ।बीच-बीच सकारात्मक, उत्साहवर्धक बाते जरूर दोहराते रहेँ ताकि दान-दक्षिणा ज्यादा प्राप्त हो। निष्कर्ष मेँ कह सकते है कि हस्तरेखा देखना एक कला है अर्थात् हवा मेँ छोङा गया तीर है, निशाना अदृश है। निशाने का न बताने वाले को पता है न सुनने वाले को अतः दोनोँ ही संतुष्ट हैँ।
-त्रिवाहिणी(जीँद,हरियाणा) से प्रकाशित।
अप्रैल-जून-2013