थके हुए शब्दोँ से क्राँति नहीँ होगी,
तोडने होँगे परंपरागत शब्दोँ के अर्थ
देने होँगे पुराने शब्दोँ को
नवीन ज्वलंत अर्थ
फिर गढनी होगी
नई परिभाषाएँ
थके हुए,लङखङाते,सहमेँ हुए शब्द
अव्यवस्था को क्राँति के नाम पर देते हैँ सबल।
सदियोँ से चले आ रहे शब्द
शनै:शनै: हो गये हैँ वृत्ताकार
अब इनसे कही,कोई चोट नहीँ पहुँचती
और ये लुढकते चले जा रहे हैँ।
क्राँति हेतु अनिवार्यता है
शब्द ऐसे हो
जो नश्तर बन ह्रदय मेँ पैवश्त हो,
अशुद्ध रक्त को बाहर निकाल
कर दे सम्पूर्ण व्यवस्था का विरेचन।
तोडने होँगे परंपरागत शब्दोँ के अर्थ
देने होँगे पुराने शब्दोँ को
नवीन ज्वलंत अर्थ
फिर गढनी होगी
नई परिभाषाएँ
थके हुए,लङखङाते,सहमेँ हुए शब्द
अव्यवस्था को क्राँति के नाम पर देते हैँ सबल।
सदियोँ से चले आ रहे शब्द
शनै:शनै: हो गये हैँ वृत्ताकार
अब इनसे कही,कोई चोट नहीँ पहुँचती
और ये लुढकते चले जा रहे हैँ।
क्राँति हेतु अनिवार्यता है
शब्द ऐसे हो
जो नश्तर बन ह्रदय मेँ पैवश्त हो,
अशुद्ध रक्त को बाहर निकाल
कर दे सम्पूर्ण व्यवस्था का विरेचन।
2 टिप्पणियां:
Vicharniy Baat.....
अच्छी प्रस्तुति।
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