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शनिवार, 5 अक्तूबर 2013
योग्य उम्मीदवार
योग्य उम्मीदवार
राजा ने अपने राज्य मेँ घोषणा करवाई कि प्रशासन संचालन हेतु दस योग्य युवको की आवश्यकता है। तय समय पर अनेक युवक पहुँचे। विभिन्न परीक्षाओँ से गुजरने के पश्चात दस प्रतिभाशाली युवकोँ का चयन कर लिया गया।
रानी ने जब सूची देखी तो हैरान रह गई। तुरंत राजा को बुलाया।
रानी ने कहा, -"राजन, यह क्या, इस सूची मेँ मेरे किसी भी रिश्तेदार का नाम तक नहीँ।"
"रानी, हमने केवल उच्च प्रतिभाशाली युवकोँ का ही चयन किया है।"
"हम कुछ नहीँ जानते, हमारे तीन रिश्तेदारोँ को तो लेना ही होगा।"
रानी की जिद्द के आगे राजा झुक गए। तुरंत मंत्री को बुलाया।
राजा ने कहा,-"मंत्रीवर, सूची मेँ रानी जी के तीन रिश्तेदारोँ के नाम शामिल किए जाएँ।"
"पर राजन......" मंत्री ने प्रतिवाद किया।
"राज आज्ञा"
मँत्री ने तुरंत समर्थन मेँ सिर हिलाया।
राजा ने कहा,-"जब सूची मेँ संशोधन कर रहो तो हमारे दो परिचितोँ का नाम भी शामिल कर लो।"
"जी महाराज"-कह कर मंत्री ने अपने परिचितोँ के नाम शामिल करने की योजना बना ली। अब पूणर्त: संशोधित सूची से सभी संतुष्ट थे॥
'साहित्य अभियान'(छत्तीसगढ) मेँ प्रकाशित।
राजा ने अपने राज्य मेँ घोषणा करवाई कि प्रशासन संचालन हेतु दस योग्य युवको की आवश्यकता है। तय समय पर अनेक युवक पहुँचे। विभिन्न परीक्षाओँ से गुजरने के पश्चात दस प्रतिभाशाली युवकोँ का चयन कर लिया गया।
रानी ने जब सूची देखी तो हैरान रह गई। तुरंत राजा को बुलाया।
रानी ने कहा, -"राजन, यह क्या, इस सूची मेँ मेरे किसी भी रिश्तेदार का नाम तक नहीँ।"
"रानी, हमने केवल उच्च प्रतिभाशाली युवकोँ का ही चयन किया है।"
"हम कुछ नहीँ जानते, हमारे तीन रिश्तेदारोँ को तो लेना ही होगा।"
रानी की जिद्द के आगे राजा झुक गए। तुरंत मंत्री को बुलाया।
राजा ने कहा,-"मंत्रीवर, सूची मेँ रानी जी के तीन रिश्तेदारोँ के नाम शामिल किए जाएँ।"
"पर राजन......" मंत्री ने प्रतिवाद किया।
"राज आज्ञा"
मँत्री ने तुरंत समर्थन मेँ सिर हिलाया।
राजा ने कहा,-"जब सूची मेँ संशोधन कर रहो तो हमारे दो परिचितोँ का नाम भी शामिल कर लो।"
"जी महाराज"-कह कर मंत्री ने अपने परिचितोँ के नाम शामिल करने की योजना बना ली। अब पूणर्त: संशोधित सूची से सभी संतुष्ट थे॥
'साहित्य अभियान'(छत्तीसगढ) मेँ प्रकाशित।
जिंदगी
जिंदगी
हँसती, मुस्कुराती
मंद पवन सी गुनगुनाती
अच्छी लगती है जिंदगी।
दुखोँ से भरी, गहरी खाई सी
अनिश्चिँताओँ से उलझी हुई
चुनौती है जिँदगी।
धूप-छांव सी, पक्ष-प्रतिपक्ष सी,
बादल सी, क्षण-क्षण परिवर्तित
रंग बदलती है जिँदगी।
अर्थ, परिभाषाओँ से बाहर
हवा सी, जल सी,
बंद मुट्ठी से फिसल जाती है जिँदगी।
अच्छी हो या बुरी
याद बन लबोँ पे
मुस्कुराती है जिँदगी।।
-त्रिवाहिनी (दिस.-2011), हरियाणा से प्रकाशित।
हँसती, मुस्कुराती
मंद पवन सी गुनगुनाती
अच्छी लगती है जिंदगी।
दुखोँ से भरी, गहरी खाई सी
अनिश्चिँताओँ से उलझी हुई
चुनौती है जिँदगी।
धूप-छांव सी, पक्ष-प्रतिपक्ष सी,
बादल सी, क्षण-क्षण परिवर्तित
रंग बदलती है जिँदगी।
अर्थ, परिभाषाओँ से बाहर
हवा सी, जल सी,
बंद मुट्ठी से फिसल जाती है जिँदगी।
अच्छी हो या बुरी
याद बन लबोँ पे
मुस्कुराती है जिँदगी।।
-त्रिवाहिनी (दिस.-2011), हरियाणा से प्रकाशित।
जीवन साथी
जीवन साथी
श्रीमान जी आज अत्यधिक प्रसन्न नजर आ रहे थे, आते भी क्योँ ना, आखिर उनके इकलौते पुत्र के रिश्ते हेतु मेहमान जो आए हुए थे। इकलौता पुत्र वो भी महानगर मेँ सरकारी चिकित्सक।
औपचारिकता के पश्चात मेहमान महोदय ने कहा,-"आपने हमारी पुत्री को तो देखा ही है।"
श्रीमान जी ने तुरंत कहा,-"हां, हां, सुंदर है, सुशील है।"
तभी अंदर से श्रीमती जी की आवाज आई।
"मैँ अभी आया।"-कह कर श्रीमान जी अंदर चले गए।
"क्या बात है ?"- श्रीमान जी ने श्रीमती जी से पूछा।
"जल्दी हाँ मत कर देना।"- श्रीमती जी ने कहा,-"मेरे मायके से फोन आया था, लङकी का बाप सरकारी पद पर है, उम्मीद है खूब दहेज देँगे।"
"अरे, तुम चिँता मत करो"-श्रीमान जी ने कहा,-"मै बिना दहेज शादी करने वाला नहीँ।"
दोनोँ के चेहरोँ पर मुस्कान नृत्य कर उठी।
श्रीमान जी मेहमानोँ के पास आकर बैठ गए।
श्रीमान जी ने कहा,-"कल ही एक जगह से रिश्ता आया था, लङकी तो सुंदर थी,पर.......।"
तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी।
"मै देखता हूँ, कौन है ?"-कह कर श्रीमान जी ने दरवाजा खोला, सामने उनका पुत्र खङा था। साथ मेँ एक नवपरिणिता थी।
"नमस्ते पिताजी।"-पुत्र ने कहा।
"अरे! तुम" श्रीमान जी ने कहा,-"अचानक कैसे आना हुआ ? और ये साथ मेँ कौन है।"
"पिताजी, मैने शादी कर ली।"-पुत्र ने कहा।
"क्या ?" श्रीमान जी किंकर्तव्यविमूढ।
"आपको दहेज चाहिए था, पर मुझे एक अच्छा जीवन साथी।"-पुत्र ने कहा,-"प्रश्न मेरे जीवन का था, अत: निणर्य भी स्वयं ही ले लिया। मुझे धन की चाहत नहीँ। एक समझदार जीवन साथी धन से कहीँ अधिक महत्वपूर्ण होता है।"
इतना कह कर पुत्र व पुत्रवधु घर मेँ प्रवेश कर गए।
-हम सब साथ साथ ( जु.-अग.-2012) नई दिल्ली से प्रकाशित।
श्रीमान जी आज अत्यधिक प्रसन्न नजर आ रहे थे, आते भी क्योँ ना, आखिर उनके इकलौते पुत्र के रिश्ते हेतु मेहमान जो आए हुए थे। इकलौता पुत्र वो भी महानगर मेँ सरकारी चिकित्सक।
औपचारिकता के पश्चात मेहमान महोदय ने कहा,-"आपने हमारी पुत्री को तो देखा ही है।"
श्रीमान जी ने तुरंत कहा,-"हां, हां, सुंदर है, सुशील है।"
तभी अंदर से श्रीमती जी की आवाज आई।
"मैँ अभी आया।"-कह कर श्रीमान जी अंदर चले गए।
"क्या बात है ?"- श्रीमान जी ने श्रीमती जी से पूछा।
"जल्दी हाँ मत कर देना।"- श्रीमती जी ने कहा,-"मेरे मायके से फोन आया था, लङकी का बाप सरकारी पद पर है, उम्मीद है खूब दहेज देँगे।"
"अरे, तुम चिँता मत करो"-श्रीमान जी ने कहा,-"मै बिना दहेज शादी करने वाला नहीँ।"
दोनोँ के चेहरोँ पर मुस्कान नृत्य कर उठी।
श्रीमान जी मेहमानोँ के पास आकर बैठ गए।
श्रीमान जी ने कहा,-"कल ही एक जगह से रिश्ता आया था, लङकी तो सुंदर थी,पर.......।"
तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी।
"मै देखता हूँ, कौन है ?"-कह कर श्रीमान जी ने दरवाजा खोला, सामने उनका पुत्र खङा था। साथ मेँ एक नवपरिणिता थी।
"नमस्ते पिताजी।"-पुत्र ने कहा।
"अरे! तुम" श्रीमान जी ने कहा,-"अचानक कैसे आना हुआ ? और ये साथ मेँ कौन है।"
"पिताजी, मैने शादी कर ली।"-पुत्र ने कहा।
"क्या ?" श्रीमान जी किंकर्तव्यविमूढ।
"आपको दहेज चाहिए था, पर मुझे एक अच्छा जीवन साथी।"-पुत्र ने कहा,-"प्रश्न मेरे जीवन का था, अत: निणर्य भी स्वयं ही ले लिया। मुझे धन की चाहत नहीँ। एक समझदार जीवन साथी धन से कहीँ अधिक महत्वपूर्ण होता है।"
इतना कह कर पुत्र व पुत्रवधु घर मेँ प्रवेश कर गए।
-हम सब साथ साथ ( जु.-अग.-2012) नई दिल्ली से प्रकाशित।
याद
याद
जब-जब मैँ उदास होता हूँ,
तब-तब याद आते हैँ,
वो हसीन पल
जो तुम्हारे साथ बीते थे।
आँखोँ मेँ तैर जाती है
तुम्हारी हवा सी चंचल छवि।
तब बरबस होठोँ पर थिरक उठती है
स्निग्ध मुस्कान
उठ जाते हैँ दुख के बादल।
तुम पास नहीँ हो
पर तुम्हारी याद
सीने से लगी रहती है
जो हर दुख मेँ देती है
एक मधुर सांत्वना।।
अविराम साहित्यिकी(दिस.-2011) हरिद्वार, उत्तराखण्ड से प्रकाशित।
जब-जब मैँ उदास होता हूँ,
तब-तब याद आते हैँ,
वो हसीन पल
जो तुम्हारे साथ बीते थे।
आँखोँ मेँ तैर जाती है
तुम्हारी हवा सी चंचल छवि।
तब बरबस होठोँ पर थिरक उठती है
स्निग्ध मुस्कान
उठ जाते हैँ दुख के बादल।
तुम पास नहीँ हो
पर तुम्हारी याद
सीने से लगी रहती है
जो हर दुख मेँ देती है
एक मधुर सांत्वना।।
अविराम साहित्यिकी(दिस.-2011) हरिद्वार, उत्तराखण्ड से प्रकाशित।
महात्मा गांधी
पावन धरा पर जिसने जन्म लिया,
भारत माँ का था वो पुत्र महान।
प्यार से कहते बापु जिनको
दिया राष्ट्रपिता का सम्मान।।
बापु का संदेश अहिंसा,
और सत्याग्रह का ज्ञान।
स्वदेशी का प्रयोग सिखाया,
और सिखाया देना क्षमा दान।।
वर्गभेद के बंधन तोङे,
सिखाया करना स्वकर्म।
मानव-मानव की सेवा करे,
यही है सबसे बङा धर्म।।
बापु के संघर्ष बल ही,
हुए हम आजाद।
तभी तो जन-जन करबध्द होकर,
करता है बापु को याद।।
विश्व मेँ जिनका आज भी,
गूँज रहा जयगान।
1948 को विदा हुए वो,
कहकर हे ! राम।।
-नई दिशा ( अक्टु.-2011) पश्चमी बंगाल से प्रकाशित।
प्यारी बहना
प्यारी बहना
मेरी प्यारी नन्हीँ बहना
है वो सारे घर का गहना।
सुंदर मुखङा, गोल-मटोल
चंचल आँखे लगती प्यारी,
ना वो रुकती, ना वो थकती
बातेँ करती ढेर सारी।।
उछल कूद कर शोर मचाती
स्कूल से जाने है कतराती,
गुस्से मेँ कुछ कह दो उसको
पल भर मेँ वो रूठ भी जाती।।
सारा दिन वो रहे खेलती
चाँद भी लगता उसे गुब्बारा,
"मुझे वो लाकर दे दो भइया
नहीँ मांगुगी फिर मेँ दोबारा।।"
ना वो लङती, ना झगङती
मस्ती उस पर रहती छाई,
उसकी बातोँ से घर भी महके
संग खुशियाँ है लेकर आई।।
सदा खुश तुम यूँ ही रहना,
मेरी प्यारी नन्ही बहना।।
---गुरप्रीत सिँह.
मेरी प्यारी नन्हीँ बहना
है वो सारे घर का गहना।
सुंदर मुखङा, गोल-मटोल
चंचल आँखे लगती प्यारी,
ना वो रुकती, ना वो थकती
बातेँ करती ढेर सारी।।
उछल कूद कर शोर मचाती
स्कूल से जाने है कतराती,
गुस्से मेँ कुछ कह दो उसको
पल भर मेँ वो रूठ भी जाती।।
सारा दिन वो रहे खेलती
चाँद भी लगता उसे गुब्बारा,
"मुझे वो लाकर दे दो भइया
नहीँ मांगुगी फिर मेँ दोबारा।।"
ना वो लङती, ना झगङती
मस्ती उस पर रहती छाई,
उसकी बातोँ से घर भी महके
संग खुशियाँ है लेकर आई।।
सदा खुश तुम यूँ ही रहना,
मेरी प्यारी नन्ही बहना।।
---गुरप्रीत सिँह.
शनिवार, 2 मार्च 2013
तुलसी और कैक्टस
तुलसी और कैक्टस
नन्हा बच्चा ना जाने कहाँ से तुलसी का पौधा ले आया और उसे घर मेँ रखे खाली गमले मेँ लगाने लगा। "मुन्ना, क्या कर रहे हो ?।" "मम्मी, तुलसी का पौधा लगा रहा हूँ।"मम्मी चिल्लाई- "कहाँ से उठा लाया, क्या जरूरत थी इसकी।" "मम्मी, दादी माँ कहती थी तुलसी घर मेँ लगाने से घर पवित्र होता है।" "सब बकवास। इससे घर की डेकोरेशन खराब हो जाएगी।"बच्चे ने पुन: प्रतिवाद किया-"मम्मी, गुरुजी कहते थे, तुलसी पर्यावरण शुद्ध करती है।"बच्चे के तर्क-वितर्क से मम्मी खीझ गई। तुलसी के पौधे को घर मेँ आश्रय न मिला। बच्चा उदास हो गया।एक दिन मम्मी एक कैक्टस का पौधा ले आई। "मम्मी-मम्मी यह क्या है ?" बच्चे ने प्रश्न किया। "बेटा, यह कैक्टस है। इससे घर की सुंदरता बढती है।" "मम्मी, इसके फूल कैसे लगते हैँ ?" "मम्मी, इसकी खुशबु कैसी होगी ?"बच्चे ने प्रश्न किये, पर उत्तर गायब।पलभर मौन रह कर बच्चे ने कैक्टस को छूना चाहा तो उसके दोनोँ हाथ काँटोँ से भर गये। बच्चा रोने लगा। "मम्मी यह पौधा गंदा है। इसे घर मेँ मत लगाना।" सुबकते हुए बोला। "बेटा, आजकल लोग इसे ही घरोँ मेँ लगाते हैँ।" मम्मी ने समझाया- "और इसे कभी छूना मत।"बच्चा पौधे का महत्व न समझ सका। अपने हाथोँ को देखता रहा।कैक्टस का पौधा तुलसी के लिए तैयार गमले मेँ आश्रय पा गया।
-पश्चिम बंगाल नई दिशा (नवं.2012) सलुवा, मे प्रकाशित।
नन्हा बच्चा ना जाने कहाँ से तुलसी का पौधा ले आया और उसे घर मेँ रखे खाली गमले मेँ लगाने लगा। "मुन्ना, क्या कर रहे हो ?।" "मम्मी, तुलसी का पौधा लगा रहा हूँ।"मम्मी चिल्लाई- "कहाँ से उठा लाया, क्या जरूरत थी इसकी।" "मम्मी, दादी माँ कहती थी तुलसी घर मेँ लगाने से घर पवित्र होता है।" "सब बकवास। इससे घर की डेकोरेशन खराब हो जाएगी।"बच्चे ने पुन: प्रतिवाद किया-"मम्मी, गुरुजी कहते थे, तुलसी पर्यावरण शुद्ध करती है।"बच्चे के तर्क-वितर्क से मम्मी खीझ गई। तुलसी के पौधे को घर मेँ आश्रय न मिला। बच्चा उदास हो गया।एक दिन मम्मी एक कैक्टस का पौधा ले आई। "मम्मी-मम्मी यह क्या है ?" बच्चे ने प्रश्न किया। "बेटा, यह कैक्टस है। इससे घर की सुंदरता बढती है।" "मम्मी, इसके फूल कैसे लगते हैँ ?" "मम्मी, इसकी खुशबु कैसी होगी ?"बच्चे ने प्रश्न किये, पर उत्तर गायब।पलभर मौन रह कर बच्चे ने कैक्टस को छूना चाहा तो उसके दोनोँ हाथ काँटोँ से भर गये। बच्चा रोने लगा। "मम्मी यह पौधा गंदा है। इसे घर मेँ मत लगाना।" सुबकते हुए बोला। "बेटा, आजकल लोग इसे ही घरोँ मेँ लगाते हैँ।" मम्मी ने समझाया- "और इसे कभी छूना मत।"बच्चा पौधे का महत्व न समझ सका। अपने हाथोँ को देखता रहा।कैक्टस का पौधा तुलसी के लिए तैयार गमले मेँ आश्रय पा गया।
-पश्चिम बंगाल नई दिशा (नवं.2012) सलुवा, मे प्रकाशित।
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
अनुत्तरित प्रश्न
अनुत्तरित प्रश्न
रविवार की सुबह रामचन्द्र परेशान सा चारपाई पर बैठा समाचार पत्र पढ रहा था। तभी प्रतिष्ठित दल के उम्मीदवार ने अपने कार्यकर्ताओँ के साथ प्रवेश किया।
"नमस्ते जी।" सभी ने समवेत स्वर मेँ कहा।
"नमस्ते।" रामचन्द्र ने खङे होते हुए कहा- "बैठिये।"
स्वयं वह एक तरफ खङा हो गया।
"चाचा अपनी पार्टी का ध्यान रखना।"- स्थानीय नेताजी ने कहा-"इस बार अपनी ही सरकार बननी चाहिए।"
"बेटा पानी लेकर आना।"- रामचन्द्र ने अपने पुत्र को कहा।
"भाई जी"-एक कार्यकर्ता ने कहा,-"इस बार प्रगति की लहर दौङेगी।"
स्वयं उम्मीदवार चुप ही रहा, कार्यकर्ता बोलते रहे।
"बेटा इधर आ।"- रामचन्द्र ने अपने दूसरे पुत्र को बुलाया।
"नेता जी को यह अखबार पढ कर सुना।
पुत्र किँकर्तव्यविमूढ खङा रहा।
"कोई खास समाचार है क्या ?"- एक कार्यकर्ता बोला।
"जी नहीँ"- रामचन्द्र ने रोष से कहा,- "सरकारी स्कूल मेँ पांचवी मेँ पढता है पर अभी तक पढना नहीँ सीखा।"
तभी रामचन्द्र का दूसरा पुत्र पानी ले आया। उम्मीदवार महोदय ने पानी का गिलास उठाया, पानी पूर्णतः दूषित था।
"चाचा, पानी तो साफ मंगवा लेते।"- एक कार्यकर्ता बोला।
"जब हम सब गाँव वाले यह पानी पी सकते हैँ।" रामचन्द्र ने आक्रोश से कहा-"तो नेताजी क्यो नहीँ पी सकते ?"
"भाई साहब यह समय बहस का नहीँ है, चुनाव के बाद आप की सभी समस्यायेँ सुनी जाएंगी।"- एक कार्यकर्ता ने कहा।
रामचन्द्र ने कहा-"आम आदमी के पास यही समय होता है, अपनी बात कहने का, चुनाव के बाद यहां कोई नहीँ सुनने वाला। जब आपकी सरकार थी तब परिवर्तन नहीँ ला सके तो अब वोट मांगने का आपको क्या अधिकार है ?"
रामचन्द्र के इस प्रश्न से वहां नीरवता व्याप्त हो गई। इस प्रश्न का किसी के पास उत्तर नहीँ था।।
-लघुकथा अभिव्यक्ति (जु.-सित. 2012) जबलपुर, मध्य प्रदेश से प्रकाशित।
आश्रय
संध्या को पक्षियोँ का समूह अपने नीङोँ को लौट चला। अधिकतर पक्षियोँ के नीङ मन्दिर की दीवारोँ एवं प्रागण मेँ खङे पेङोँ पर हैँ। कभी- कभी श्रद्धालु मन्दिर मेँ बने चबूतरे पर दाने डाल देते हैँ। पानी की उचित व्यवस्था भी है। अतः मन्दिर मेँ असंख्य पक्षियोँ का निवास है।
आज जब पक्षियोँ का समूह शाम को लौटा तो हैरान रह गया। सभी पक्षियोँ के घोँसले जमीन पर बिखरे पङे थे। किसी के अण्डे तो किसी के बच्चे हताहत पङे थे।
मन्दिर मेँ सफाई अभियान के अन्तर्गत पक्षियोँ के घोँसलोँ को नष्ट कर दिया गया। पेङोँ की शाखाऐँ काट दी गई। आसमान मेँ उङते पक्षियोँ की आँखोँ मेँ अश्रु आ गये।
"हम तो भगवान के आश्रय मेँ बैठे थे। क्या पता था हम यहाँ भी सुरक्षित नहीँ।" -कबूतर ने कहा।
"मनुष्य तो अब घरोँ मेँ भी घोँसले नहीँ बनाने देता।"- चिङिया बोली।
"हाँ, अब तो सभी घर पक्के बन गए। हमारे आश्रय छिन गए।"- दूसरी चिङिया ने समर्थन किया।
"हमारा तो जिस पेङ मेँ कोटर था, वह पेङ ही काट दिया।"- मैना बोली।
अश्रुपूर्ण नेत्रोँ से कबूतर ने कहा,- "मेरे नन्हे-नन्हे बच्चे मर गये।"
अपना आश्रय छिन जाने से सभी पक्षी नैराश्य मेँ डूब गये।
"अब हम क्या करेँ ?" सभी पक्षियोँ का एक ही प्रश्न था।
"अब यहाँ रहने का क्या औचित्य।"- कबूतर ने कहा- "चलो कहीँ नये घर की तलाश मेँ चलते हैँ।"
सभी पक्षियोँ ने पुनः अश्रुपूर्ण नेत्रोँ से अपने घोँसलोँ को देखा। पक्षियोँ के नेत्रोँ से अश्रु मन्दिर पर टपकने लगे मानो भगवान को अर्ध्य दे रहे होँ। पक्षियोँ का समूह नैराश्य से नये आश्रय की तलाश मेँ वहाँ से उङ चला।।
जर्जर कश्ती (नव.2012) अलीगढ, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित।
रविवार की सुबह रामचन्द्र परेशान सा चारपाई पर बैठा समाचार पत्र पढ रहा था। तभी प्रतिष्ठित दल के उम्मीदवार ने अपने कार्यकर्ताओँ के साथ प्रवेश किया।
"नमस्ते जी।" सभी ने समवेत स्वर मेँ कहा।
"नमस्ते।" रामचन्द्र ने खङे होते हुए कहा- "बैठिये।"
स्वयं वह एक तरफ खङा हो गया।
"चाचा अपनी पार्टी का ध्यान रखना।"- स्थानीय नेताजी ने कहा-"इस बार अपनी ही सरकार बननी चाहिए।"
"बेटा पानी लेकर आना।"- रामचन्द्र ने अपने पुत्र को कहा।
"भाई जी"-एक कार्यकर्ता ने कहा,-"इस बार प्रगति की लहर दौङेगी।"
स्वयं उम्मीदवार चुप ही रहा, कार्यकर्ता बोलते रहे।
"बेटा इधर आ।"- रामचन्द्र ने अपने दूसरे पुत्र को बुलाया।
"नेता जी को यह अखबार पढ कर सुना।
पुत्र किँकर्तव्यविमूढ खङा रहा।
"कोई खास समाचार है क्या ?"- एक कार्यकर्ता बोला।
"जी नहीँ"- रामचन्द्र ने रोष से कहा,- "सरकारी स्कूल मेँ पांचवी मेँ पढता है पर अभी तक पढना नहीँ सीखा।"
तभी रामचन्द्र का दूसरा पुत्र पानी ले आया। उम्मीदवार महोदय ने पानी का गिलास उठाया, पानी पूर्णतः दूषित था।
"चाचा, पानी तो साफ मंगवा लेते।"- एक कार्यकर्ता बोला।
"जब हम सब गाँव वाले यह पानी पी सकते हैँ।" रामचन्द्र ने आक्रोश से कहा-"तो नेताजी क्यो नहीँ पी सकते ?"
"भाई साहब यह समय बहस का नहीँ है, चुनाव के बाद आप की सभी समस्यायेँ सुनी जाएंगी।"- एक कार्यकर्ता ने कहा।
रामचन्द्र ने कहा-"आम आदमी के पास यही समय होता है, अपनी बात कहने का, चुनाव के बाद यहां कोई नहीँ सुनने वाला। जब आपकी सरकार थी तब परिवर्तन नहीँ ला सके तो अब वोट मांगने का आपको क्या अधिकार है ?"
रामचन्द्र के इस प्रश्न से वहां नीरवता व्याप्त हो गई। इस प्रश्न का किसी के पास उत्तर नहीँ था।।
-लघुकथा अभिव्यक्ति (जु.-सित. 2012) जबलपुर, मध्य प्रदेश से प्रकाशित।
आश्रय
संध्या को पक्षियोँ का समूह अपने नीङोँ को लौट चला। अधिकतर पक्षियोँ के नीङ मन्दिर की दीवारोँ एवं प्रागण मेँ खङे पेङोँ पर हैँ। कभी- कभी श्रद्धालु मन्दिर मेँ बने चबूतरे पर दाने डाल देते हैँ। पानी की उचित व्यवस्था भी है। अतः मन्दिर मेँ असंख्य पक्षियोँ का निवास है।
आज जब पक्षियोँ का समूह शाम को लौटा तो हैरान रह गया। सभी पक्षियोँ के घोँसले जमीन पर बिखरे पङे थे। किसी के अण्डे तो किसी के बच्चे हताहत पङे थे।
मन्दिर मेँ सफाई अभियान के अन्तर्गत पक्षियोँ के घोँसलोँ को नष्ट कर दिया गया। पेङोँ की शाखाऐँ काट दी गई। आसमान मेँ उङते पक्षियोँ की आँखोँ मेँ अश्रु आ गये।
"हम तो भगवान के आश्रय मेँ बैठे थे। क्या पता था हम यहाँ भी सुरक्षित नहीँ।" -कबूतर ने कहा।
"मनुष्य तो अब घरोँ मेँ भी घोँसले नहीँ बनाने देता।"- चिङिया बोली।
"हाँ, अब तो सभी घर पक्के बन गए। हमारे आश्रय छिन गए।"- दूसरी चिङिया ने समर्थन किया।
"हमारा तो जिस पेङ मेँ कोटर था, वह पेङ ही काट दिया।"- मैना बोली।
अश्रुपूर्ण नेत्रोँ से कबूतर ने कहा,- "मेरे नन्हे-नन्हे बच्चे मर गये।"
अपना आश्रय छिन जाने से सभी पक्षी नैराश्य मेँ डूब गये।
"अब हम क्या करेँ ?" सभी पक्षियोँ का एक ही प्रश्न था।
"अब यहाँ रहने का क्या औचित्य।"- कबूतर ने कहा- "चलो कहीँ नये घर की तलाश मेँ चलते हैँ।"
सभी पक्षियोँ ने पुनः अश्रुपूर्ण नेत्रोँ से अपने घोँसलोँ को देखा। पक्षियोँ के नेत्रोँ से अश्रु मन्दिर पर टपकने लगे मानो भगवान को अर्ध्य दे रहे होँ। पक्षियोँ का समूह नैराश्य से नये आश्रय की तलाश मेँ वहाँ से उङ चला।।
जर्जर कश्ती (नव.2012) अलीगढ, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित।
बुधवार, 2 जनवरी 2013
व्यक्तित्व
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ : एक संस्मरण
23 सितम्बर 1908 को बिहार के सिमरिया ग्राम (जिला बेगूसराय) में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का व्यक्तित्व एवं काव्य
ओज, पौरुष और युगधर्म का दस्तावेज है। घर की आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी की, पर अपने विद्रोही कवि को हमेशा मुखर रखा।
जब 1935 में दिनकर जी की राष्ट्रीय भावों से परिपूर्ण कृति ‘रेणुका’ प्रकाशित हुई, तो इसकी सर्वत्र चर्चा हुई। इसकी प्रसिद्धि एवं राष्ट्रीयता से परिपूर्णता की खबर सरकार तक पहुँची तो दिनकर जी को बुलाया गया। मुजफ्फरपुर के तात्कालिक न्यायाधीश बौस्टेड के समक्ष दिनकर जी उपस्थित हुए।
न्यायाधीश बौस्टेड ने पूछा, ‘‘क्या आप ‘रेणुका’ के लेखक हैं?’’
दिनकर जी ने उत्तर दिया, ‘‘जी, हाँ।’’
बौस्टेड ने पूछा, ‘‘आपने सरकार विरोधी कविताएं कयों लिखी हैं? पुस्तक प्रकाशन से पूर्व सरकार से अनुमति क्यों नहीं ली?’’
दिनकर जी ने निर्भय स्वर में उत्तर दिया, ‘‘मेरा भविष्य साहित्य में है। अनुमति मांगकर प्रकाशन करवाने से मेरा भविष्य बिगड़ जाएगा। ‘रेणुका’ की कविताएं देशभक्ति पूर्ण हैं, सरकार विरोधी नहीं। क्या देशभक्ति अपराध है?’’
बौस्टेड महोदय उनके उत्तर से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, ‘‘देशभक्ति अपराध नहीं है और वह कभी अपराध नहीं होगी।’’
फिर दिनकर जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई।
23 सितम्बर 1908 को बिहार के सिमरिया ग्राम (जिला बेगूसराय) में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का व्यक्तित्व एवं काव्य
ओज, पौरुष और युगधर्म का दस्तावेज है। घर की आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी की, पर अपने विद्रोही कवि को हमेशा मुखर रखा।
जब 1935 में दिनकर जी की राष्ट्रीय भावों से परिपूर्ण कृति ‘रेणुका’ प्रकाशित हुई, तो इसकी सर्वत्र चर्चा हुई। इसकी प्रसिद्धि एवं राष्ट्रीयता से परिपूर्णता की खबर सरकार तक पहुँची तो दिनकर जी को बुलाया गया। मुजफ्फरपुर के तात्कालिक न्यायाधीश बौस्टेड के समक्ष दिनकर जी उपस्थित हुए।
न्यायाधीश बौस्टेड ने पूछा, ‘‘क्या आप ‘रेणुका’ के लेखक हैं?’’
दिनकर जी ने उत्तर दिया, ‘‘जी, हाँ।’’
बौस्टेड ने पूछा, ‘‘आपने सरकार विरोधी कविताएं कयों लिखी हैं? पुस्तक प्रकाशन से पूर्व सरकार से अनुमति क्यों नहीं ली?’’
दिनकर जी ने निर्भय स्वर में उत्तर दिया, ‘‘मेरा भविष्य साहित्य में है। अनुमति मांगकर प्रकाशन करवाने से मेरा भविष्य बिगड़ जाएगा। ‘रेणुका’ की कविताएं देशभक्ति पूर्ण हैं, सरकार विरोधी नहीं। क्या देशभक्ति अपराध है?’’
बौस्टेड महोदय उनके उत्तर से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, ‘‘देशभक्ति अपराध नहीं है और वह कभी अपराध नहीं होगी।’’
फिर दिनकर जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई।
- ग्राम व डाक- बगीचा, तह.-रायसिंह नगर, जिला-श्री गंगा नगर-335051 (राज.)
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