मंगलवार, 20 मार्च 2012

नास्तिक

                      नास्तिक

‘‘यह लडका तो पूर्णतः नास्तिक है’’
‘‘यह तो कभी मन्दिर भी नहीं जाता’’
 नवयुवक के प्रति अक्सर ये टिप्पणियां सुनाइ दे जाती थी
यह सत्य है कि वह नवयुवक  क भी धार्मिक स्थलों पर अपना सिर झुकाने या प्रवचन सुनने नहीं गया।अगर कहीं जाता है,तो वह है,खेल का मैदान।
‘‘खेलने के अतिरिक्त इसे कुछ सूझता ही नहीं ।यह तो घोर नास्तिक है’’
एक और टिप्पणी।
एक दिन उस नवयुवक ने इन टिप्पणियों का उतर दे दिया।
कार्यक्रम मे भाग लेने जा रहे थे।वही मन्दिर के पास धूप में एक दुर्बल गाय बीमार पडी थी ।दो तीन कुते गाय को घेरे खडे थे। एक दो लोगो ने कुतों को भगाया,कुते फिर आ जाते ।
तभी वह नवयुवक अपने साथियों के साथ वहा से गुजरा तो,उस कि घावों का उपयाचार किया ,चारे पानी कि व्यवस्था की।उस दिन नवयुवक अपना खेल छोडकर गाय के पास बैठ गया। दूसरी तरफ अब भी मन्दिर मे कथा सुनने जा रहे थे।
   
                                               -  गुरप्रीत सिंह                
                                              

धर्म

      धर्म

नगर  में यहां पसरा है सन्नाटा
सिसकती है हवाए

निस्तब्ध आसमान देखता है,
बेबस  धरा पर
धर्म के नाम हुए अधर्म।

सफेद दीवार पर रक्त के छींटे
जो कभी नही बता सकते
किस धर्म के है।

गली  में पडी क्षत-विक्षत
अर्धनग्न लाशें
धर्म से विमुख।

जलते हुए घरों
रह रह कर उठता है विलाप,
दर्द से भी भीगा क्रंदन
चीर जाता है नीरवता
और दर्द कभी धर्म नहीं देखता।

ये सब हुआ है
उसी धर्म के नाम पर,
‘‘जो जोड़ता है,तोड़ता नहीं।’’