प्रथम चुनाव कार्यक्रम- 2018
शिक्षक जीवन में प्रवेश के बाद नये-नये अनुभव भी प्राप्त हो रहें हैं। कुछ नया करने को, कुछ नया सीखने को मिल रहा है। जीवन का आनंद भी सीखने में है।
लोकतंत्र का एक बड़ा पर्व है मतदान। मतदान जनता और देश का भविष्य तय करता है। मतदान के दिन जनता निर्णय लेती है और यह निर्णय उसने भविष्य का निर्माण करता है।
आज तक तो मैंने लाइन में लग कर मतदान किया था और आज प्रथम बार मुझे मतदान करवाने का सौभाग्य मिला। जिसमें कुछ नया अनुभव प्राप्त किया।
राजस्थान विधान सभा आम चुनाव-2018 का
लोकतंत्र का एक बड़ा पर्व है मतदान। मतदान जनता और देश का भविष्य तय करता है। मतदान के दिन जनता निर्णय लेती है और यह निर्णय उसने भविष्य का निर्माण करता है।
आज तक तो मैंने लाइन में लग कर मतदान किया था और आज प्रथम बार मुझे मतदान करवाने का सौभाग्य मिला। जिसमें कुछ नया अनुभव प्राप्त किया।
राजस्थान विधान सभा आम चुनाव-2018 का
07.12.2018 को राजस्थान विधान सभा के आम चुनाव हैं। हमें दिनांक 06.12.2018 को जिला मुख्यालय सिरोही पहुंचना था। माउंट आबू और सिरोही की दूरी लगभग 85 KM है लेकिन समस्या यह है की सर्दी की सुबह आठ बजे सिरोही पहुंचना था और इतनी सुबह साधन की व्यवस्था होना मुश्किल है। हमें आठ अध्यापन मित्र थे। माउंट स्कूल से छोटे लाल जी, दयानंद जी, श्याम सुंदर जी, हुकुम चंद और मैं गुरप्रीत सिंह। ओरिया स्कूल से सुरेश कुमार, मनोज कुमार (दोनों मेरे रुममेट) और राजु आलिका जी।
सुबह 6:30 बजे एक तय जीप द्वारा तय समय आठ बजे निर्धारित स्थल 'नवीन भवन सिरोही' पहुंचे।
तीसरे चरण की आज ट्रेनिंग थी। इससे पूर्व नवंबर माह में दिनांक बारह और छब्बीस को दो ट्रेनिंग हो चुकी थी। इस तीसरी ट्रेनिंग में मुझे मेरे वो चुनाव साथी मिल गये जिनके साथ मुझे बूथ पर कार्य करना था। चारों तरफ टेंट की व्यवस्था और अंदर व्यवस्थित बैठक। एक बात यहाँ उल्लेखनीय अगर हम चाहें तो एक अच्छी व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं जैसा मैंने इन तीन ट्रेनिंगों में देखा। सब कुछ व्यवस्थित था। आपको आपकी निर्धारित लाईन में, निर्धारित सीट पर ही बैठना है।
यहाँ पर आकर हमारे अध्यापन साथी अलग-अलग हो गये और तय प्रणाली के अनुसार नये साथी मिले। वह टीम मिली जो चुनाव में साथ होगी।
सुबह 6:30 बजे एक तय जीप द्वारा तय समय आठ बजे निर्धारित स्थल 'नवीन भवन सिरोही' पहुंचे।
तीसरे चरण की आज ट्रेनिंग थी। इससे पूर्व नवंबर माह में दिनांक बारह और छब्बीस को दो ट्रेनिंग हो चुकी थी। इस तीसरी ट्रेनिंग में मुझे मेरे वो चुनाव साथी मिल गये जिनके साथ मुझे बूथ पर कार्य करना था। चारों तरफ टेंट की व्यवस्था और अंदर व्यवस्थित बैठक। एक बात यहाँ उल्लेखनीय अगर हम चाहें तो एक अच्छी व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं जैसा मैंने इन तीन ट्रेनिंगों में देखा। सब कुछ व्यवस्थित था। आपको आपकी निर्धारित लाईन में, निर्धारित सीट पर ही बैठना है।
यहाँ पर आकर हमारे अध्यापन साथी अलग-अलग हो गये और तय प्रणाली के अनुसार नये साथी मिले। वह टीम मिली जो चुनाव में साथ होगी।
मेरे चुनाव के साथी
PRO- अचला राम मेघवाल,
|
PO-1 गुरप्रीत सिंह
PO-2 मुकेश पुरोहित,
PO-3 गजेन्द्र जी
ट्रेनिग के पश्चात हमने अपनी मशीनें (AVM, CU, VVPAT) और विभिन्न प्रपत्र एकत्र किये।
हमारा विधानसभा क्षेत्र था रेवदर (148) और बूथ था गाँव मीठन(दाया भाग)(क्रमांक-137) हमारी पार्टी का नंबर था-571.
अब हमारी पहचान इन नंबरों से थी अब हमारे नाम PRO, PO-1,2,3.
मीठन गांव के लिए दो टीमें थी। हमारी टीम 137 नंबर और दूसरी टीम नंबर 138.
PO-2 मुकेश पुरोहित,
PO-3 गजेन्द्र जी
ट्रेनिग के पश्चात हमने अपनी मशीनें (AVM, CU, VVPAT) और विभिन्न प्रपत्र एकत्र किये।
हमारा विधानसभा क्षेत्र था रेवदर (148) और बूथ था गाँव मीठन(दाया भाग)(क्रमांक-137) हमारी पार्टी का नंबर था-571.
अब हमारी पहचान इन नंबरों से थी अब हमारे नाम PRO, PO-1,2,3.
मीठन गांव के लिए दो टीमें थी। हमारी टीम 137 नंबर और दूसरी टीम नंबर 138.
एक निर्धारित बस से हमारा सफर आरम्भ हुआ। लगभग पचास किमी. का सफर हमें तय करना था। इस सफर का एक तय मार्ग था, उस मार्ग के अतिरिक्त किसी भी मार्ग से हमें नहीं जाना था। इस निर्धारित मार्ग में 06 'चुनाव चैक पोस्ट' बने थे, जहाँ पर पहुंच कर हमें अपने आगमन की सूचना देनी थी। क्या जबरदस्त व्यवस्था थी। लगभग 50-60 KM. की दूरी में हमारी बस 06 जगह ट्रेक की की गयी और तुरंत सिरोही यह सूचना भी पहुंचायी गयी की निर्धारित बस निर्धारित मार्ग से अपने गंतव्य को बढ रही है।
जब हमने ये 06 चैक पोस्ट पार कर लिये तो अब हमें एक रजिस्टर मोबाइल नंबर से एक तय फाॅर्मेट में अपनी समय-समय पर मैसेज द्वारा सूचना देनी थी। यह मैसेज सूचना निर्धारित बूथ पर पहुंचने से लेकर आगामी दिवस को मतदान पेटी जमा करवाने के दौरान तक देनी थी की हम सुरक्षित वापस पहुंच गये।
इसे कहते हैं व्यवस्था। हर पल, पल-पल की रिपोर्ट।
मीठन गांव(रेवदर, विधानसभा) में पहुंच कर हमने सबसे पहले अपना बूथ वाला कमरा देखा। उसमें किसी भी प्रकार का कोई चित्र, पोस्टर या चिह्न नहीं होना चाहिए।
चुनाव के दौरान इतने प्रकार के प्रपत्र, लिफाफे, अन्य सामग्री दी जाती है की दिमाग समझ ही बह पाता की क्या करना है। किस प्रपत्र को किस प्रकार भरना है। साथी मित्रों को फोन करो या यू टयूब का सहारा लो, तब जाकर काम समझ में आता है। फिर भी बहुत से प्रपत्र अधूरे रह जाते हैं या फिर अनावश्यक समझ कर छोड़ने पड़ते हैं।
देर रात तक हमने विभिन्न कागजात तैयार किये ताकी चुनाव के समय कोई परेशानी न हो। देर रात तक कार्य करके सो गये।
सुबह चार बजे आँख खुल गयी। आँख तो क्या खुली, सच तो यह किसी को भी ढंग से नींद नहीं आयी। हालांकि विद्यालय में रात्रि विश्राम की अच्छी व्यवस्था थी।
जब हमने ये 06 चैक पोस्ट पार कर लिये तो अब हमें एक रजिस्टर मोबाइल नंबर से एक तय फाॅर्मेट में अपनी समय-समय पर मैसेज द्वारा सूचना देनी थी। यह मैसेज सूचना निर्धारित बूथ पर पहुंचने से लेकर आगामी दिवस को मतदान पेटी जमा करवाने के दौरान तक देनी थी की हम सुरक्षित वापस पहुंच गये।
इसे कहते हैं व्यवस्था। हर पल, पल-पल की रिपोर्ट।
मीठन गांव(रेवदर, विधानसभा) में पहुंच कर हमने सबसे पहले अपना बूथ वाला कमरा देखा। उसमें किसी भी प्रकार का कोई चित्र, पोस्टर या चिह्न नहीं होना चाहिए।
चुनाव के दौरान इतने प्रकार के प्रपत्र, लिफाफे, अन्य सामग्री दी जाती है की दिमाग समझ ही बह पाता की क्या करना है। किस प्रपत्र को किस प्रकार भरना है। साथी मित्रों को फोन करो या यू टयूब का सहारा लो, तब जाकर काम समझ में आता है। फिर भी बहुत से प्रपत्र अधूरे रह जाते हैं या फिर अनावश्यक समझ कर छोड़ने पड़ते हैं।
देर रात तक हमने विभिन्न कागजात तैयार किये ताकी चुनाव के समय कोई परेशानी न हो। देर रात तक कार्य करके सो गये।
सुबह चार बजे आँख खुल गयी। आँख तो क्या खुली, सच तो यह किसी को भी ढंग से नींद नहीं आयी। हालांकि विद्यालय में रात्रि विश्राम की अच्छी व्यवस्था थी।
विद्यालय में बरगद का पेड़। |
सुबह के चार बजे, चारों तरफ अंधेरा, मौमस बिलकुल ठण्डा, और नहाने का ठण्डा पानी। बस इस ठण्डे पानी का विचार कहां नहाने देता था। हिम्मत की, सबसे पहले नल के ठण्डे पानी के नीचे सिर देने की हिम्मत मैंने ही की। फिर तो मुकेश जी और गजेन्द्र जी भी आ पहुंचे।
अचला राम जी उठ तो गये थे लेकिन फिर भी रजाई से बाहर मुँह नहीं निकाला। सुबह छ: बजे हमने सब व्यवस्था कर दी थी। सब मशीने तैयार थी। सात बजे Mock Poll आरम्भ करना था। 7:15 पर दो एजेंट पहुंचे। सभी के लिए मशीनें प्रदर्शन को तैयार थी। रेवदर विधानसभा से NOTA समेत कुछ आठ प्रत्याशी थे।
अचला राम जी उठ तो गये थे लेकिन फिर भी रजाई से बाहर मुँह नहीं निकाला। सुबह छ: बजे हमने सब व्यवस्था कर दी थी। सब मशीने तैयार थी। सात बजे Mock Poll आरम्भ करना था। 7:15 पर दो एजेंट पहुंचे। सभी के लिए मशीनें प्रदर्शन को तैयार थी। रेवदर विधानसभा से NOTA समेत कुछ आठ प्रत्याशी थे।
8:15 पर वास्तविक मतदान आरम्भ हुआ। हमारे पास कुल 585 मतदाता ही थे। सुबह एक बार तो एक- दो व्यक्ति बोले की मतदान जल्दी आरम्भ करो, हमें काम है। लेकिन चुनाव आरम्भ होने के बाद सब शांति रही। क्योंकि ज्यादा वोटर थे नहीं थे। कभी-कभी तो हम दस-बीस मिनट खाली बैठे रहते थे और कभी -कभी मतदाता एक साथ समूह में ही आते थे।
एक बार एक समस्या भी आयी। एक लड़का किसी का फर्जी मतदान करके चला गया। जो भी वोट देने आता है तो वह सबसे पहले PO-01, के पास आता है। PO-01 उसके पास उपलब्ध दस्तावेज (वोटर स्लिप, आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड आदि) के आधार उसकी पहचान करनी है और उसका नाम पुकारता है। पीछे बैठे एजेंट उसकी पहचान सुनिश्चित करनी होती हैं। एजेंट का काम भी यही होता है की वह सही-गलत मतदाता की पहचान करे।
जब वह लड़का वहां पहुंचा तो मैंने वोटर स्लिप के आधार पर उसका नाम पुकारा तो पीछे बैठे दोनों एजेंट ने कोई आपत्ति नहीं। उसके लगभग एक घण्टे बाद असली मतदाता वहाँ आ पहुंचा, उसके साथ एक व्यक्ति और भी था। आते ही दोनों ने शोर मचा दिया, हमारा वोट किसी ने पहले ही पोल कर दिया।
हमारे बूथ पर मीठन गाँव के अलावा आस पास के छोटे छोटे एक दो गाँव और कुछ ढाणियों के लोग भी जुड़े हुये थे, इसलिए उनकी पहचान करना मुश्किल था।
मैंने उसका क्रमांक देखा तो मेरा माथा ठनका। यह मेरी जिम्मेदारी थी, और एजेंट को तय करना था कौन गलत था कौन सही।
तभी काँग्रेस पार्टी का एजेंट बोला -"सर, यह लड़का सही है। पहले जो लड़का इसकी जगह वोट डाल कर गया है, वह गलत था।"
"भाई, तुझे पहले बोलना चाहिए था?"
"मैंने कहा था।"
"किसे?"
"मैंने सुशील को कहा था।"- उसने भाजपा के एजेंट की ओर इशारा किया।
" भाई, आप मुझे बताते। आपको सुबह भी यही निर्देश दिये गये थे की आपको कहीं भी कोई आपत्ति हो तो तुरंत बोले।"
दोनों खामोश।
PRO अचला राम जी ने सब स्थिति को संभाल लिया। उस लड़के का 'टेंडर वोट' डलवाया गया।
टेंडर वोट- ऐसी परिस्थिति में टेंडर वोट डलवाया जाता है, जो की EVM मशीन की बजाय बैलेट पेपर द्वारा पोल करवाया जाता है।
यह हमारी प्रथम गलती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात एक ओर महिला आ गयी। उसका नाम तो अब याद नहीं। मैंने उसका क्रमांक देखा तो उस क्रमांक पर पहले ही वोट डाला जा चुका था।
"हे! भगवान।"- मैं घबरा गया, लेकिन इस समस्या का समाधान तुरंत हो गया क्योंकि वह हमारे बूथ की मतदाता नहीं थी। यह संयोग था की उसका नाम समान था।
ऐसा ही एक और किस्सा है जब एक लड़की वोट डालने आयी। वह मुश्किल से पन्द्रह- सोलह साल की होगी। मैंने उसकी वोटर स्लिप देखी, आधार कार्ड देखा, उसका चेहरा दोनों जगह समान था। शक्ल मिल रही थी। तभी पीछे से कांग्रेस के एजेंट ने विरोध जता दिया।
"यह लड़की तो और है।" - वह चिल्लाया।
"कैसे?"-मैंने पूछा- " इसकी शक्ल तो दोनों पहचान पत्रों में मिल रही है।"
"वोट इसकी बड़ी बहन का है और ये उसकी छोटी बहन है। बस शक्ल दोनों की मिलती है।"
"क्यों बेटा फर्जी वोट डालने आयी हो।"- मैंने उसे समझाने के अंदाज में कहा,- " पता है यह कानूनन अपराध है।"
वह बच्ची घबरा गयी और वापस भाग गयी।
हमारे साथ एक पुलिस काॅनिस्टेबल भी था। हनुमानगढ़ के रावतसर से कोई पवन कुमार नाम से। लेकिन डयूटी बूथ के गेट पर थी, पर वह अपनी डयूटी से लापरवाह रहा। अगर वह अपनी डयूटी पर बैठता तो अचानक से आने वाली भीड़ या जो लोग हमारे मेज पर एकत्र हो जाते थे उनसे बचाव हो जाता। हमारे कोई गंभीर समस्या न थी इसलिए PRO ने भी उसे कुछ नहीं कहा।
मुझे यहाँ के लोगों के नाम बहुत अजीब से लगे। पंखू देवी(यह यहाँ की महिलाओं का सर्वाधिक नाम था), डाया राम, गोधा राम, ....लड़कों मे अर्जुन नाम बहुत था।
शाम को पांच चुनाव समापन का समय था। हमने निर्धारित घोषणा के बाद विद्यालय का मुख्य दरवाजा बंद करवा दिया। हमे इतनी परेशानी चुवान के दौरान नहीं आयी जितनी अब, इतने प्रपत्र और इतने लिफाफे थे पता ही नहीं चला रहा था की कौनसा प्रपत्र भरना है और कौनसा नहीं। किस प्रपत्र को किस लिफाफे में डालना है और किसे नहीं। सबसे बड़ी समस्या यह की सब प्रपत्र अंग्रेजी में। पता नहीं क्यों हम अंग्रेजी के इतने अधीन हैं। आज 70 साल बाद भी अंग्रेजी का मोह नहीं छूटा और ढंग से सीखा/सीख भी नहीं पाये।
एक किस्सा तो रोचक था। अंग्रेजी में एक लाइन समझ में नहीं आ रही थी।
"गुरप्रीत जी, इसका अर्थ क्या है। इसमें क्या भरना है।"- अचलाराम जी ने पूछा।
मेरी समझ में भी कुछ नहीं आया। तब PO-2 मुकेश जी ने 'गूगल ट्रास्लेट' का सहारा दिया। गूगल ट्रास्लेट ने तो नजारा ही बदल दिया। गूगल का उत्तर था " काम में लिए गये बर्तनों की सख्या।"
'यह तो बर्तनों की सख्या बता रहा है, जो हमने काम में लिए थे।"-मुकेश जी ने कहा।
"आप भी मजे ले रहे हो। इनमें बर्तनों का कहां संबंध है।"-मैंने कहा।
" तो फिर चुनाव केडिडेट के निशान की बात होगी?"
"भाई उनमें कहां बर्तन होते हैं। भाजपा का कमल क्या बर्तन होगा। हाथी और हाथ कहां बर्तन होंगे।"
"यार, गूगल तो यही बता रहा है।"
"मैं दूसरी पार्टी से पूछ कर आता हूँ।"- अचलाराम जी बाहर को भागे।
पांच बजे वोटिंग खत्म हुयी लेकिन हम आठ बजे तक लगे रहे। सभी कागजों को समझना और भरना। कुछ गलत नहीं भरना और अतिमहत्वपूर्ण कागजों को खाली नहीं छोड़ना। जिन लिफाफों में कोई सूचना नहीं है उनमें एक रिक्त सफेद कागज पर NILL लिखकर डालना था। उन लिफाफों को भी निर्धारित पैकेट में बंद करना था।
दोनों पार्टियां 8:10 PM पर मीठन गांव से रवाना हुयी। वापसी पर भी वही चैक पोस्ट की प्रक्रिया से गुजरते हुए। रात को लगभग नौ बजे 'नवीन भवन सिरोही' पहुंचे।
जब वह लड़का वहां पहुंचा तो मैंने वोटर स्लिप के आधार पर उसका नाम पुकारा तो पीछे बैठे दोनों एजेंट ने कोई आपत्ति नहीं। उसके लगभग एक घण्टे बाद असली मतदाता वहाँ आ पहुंचा, उसके साथ एक व्यक्ति और भी था। आते ही दोनों ने शोर मचा दिया, हमारा वोट किसी ने पहले ही पोल कर दिया।
हमारे बूथ पर मीठन गाँव के अलावा आस पास के छोटे छोटे एक दो गाँव और कुछ ढाणियों के लोग भी जुड़े हुये थे, इसलिए उनकी पहचान करना मुश्किल था।
मैंने उसका क्रमांक देखा तो मेरा माथा ठनका। यह मेरी जिम्मेदारी थी, और एजेंट को तय करना था कौन गलत था कौन सही।
तभी काँग्रेस पार्टी का एजेंट बोला -"सर, यह लड़का सही है। पहले जो लड़का इसकी जगह वोट डाल कर गया है, वह गलत था।"
"भाई, तुझे पहले बोलना चाहिए था?"
"मैंने कहा था।"
"किसे?"
"मैंने सुशील को कहा था।"- उसने भाजपा के एजेंट की ओर इशारा किया।
" भाई, आप मुझे बताते। आपको सुबह भी यही निर्देश दिये गये थे की आपको कहीं भी कोई आपत्ति हो तो तुरंत बोले।"
दोनों खामोश।
PRO अचला राम जी ने सब स्थिति को संभाल लिया। उस लड़के का 'टेंडर वोट' डलवाया गया।
टेंडर वोट- ऐसी परिस्थिति में टेंडर वोट डलवाया जाता है, जो की EVM मशीन की बजाय बैलेट पेपर द्वारा पोल करवाया जाता है।
यह हमारी प्रथम गलती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात एक ओर महिला आ गयी। उसका नाम तो अब याद नहीं। मैंने उसका क्रमांक देखा तो उस क्रमांक पर पहले ही वोट डाला जा चुका था।
"हे! भगवान।"- मैं घबरा गया, लेकिन इस समस्या का समाधान तुरंत हो गया क्योंकि वह हमारे बूथ की मतदाता नहीं थी। यह संयोग था की उसका नाम समान था।
ऐसा ही एक और किस्सा है जब एक लड़की वोट डालने आयी। वह मुश्किल से पन्द्रह- सोलह साल की होगी। मैंने उसकी वोटर स्लिप देखी, आधार कार्ड देखा, उसका चेहरा दोनों जगह समान था। शक्ल मिल रही थी। तभी पीछे से कांग्रेस के एजेंट ने विरोध जता दिया।
"यह लड़की तो और है।" - वह चिल्लाया।
"कैसे?"-मैंने पूछा- " इसकी शक्ल तो दोनों पहचान पत्रों में मिल रही है।"
"वोट इसकी बड़ी बहन का है और ये उसकी छोटी बहन है। बस शक्ल दोनों की मिलती है।"
"क्यों बेटा फर्जी वोट डालने आयी हो।"- मैंने उसे समझाने के अंदाज में कहा,- " पता है यह कानूनन अपराध है।"
वह बच्ची घबरा गयी और वापस भाग गयी।
हमारे साथ एक पुलिस काॅनिस्टेबल भी था। हनुमानगढ़ के रावतसर से कोई पवन कुमार नाम से। लेकिन डयूटी बूथ के गेट पर थी, पर वह अपनी डयूटी से लापरवाह रहा। अगर वह अपनी डयूटी पर बैठता तो अचानक से आने वाली भीड़ या जो लोग हमारे मेज पर एकत्र हो जाते थे उनसे बचाव हो जाता। हमारे कोई गंभीर समस्या न थी इसलिए PRO ने भी उसे कुछ नहीं कहा।
मुझे यहाँ के लोगों के नाम बहुत अजीब से लगे। पंखू देवी(यह यहाँ की महिलाओं का सर्वाधिक नाम था), डाया राम, गोधा राम, ....लड़कों मे अर्जुन नाम बहुत था।
शाम को पांच चुनाव समापन का समय था। हमने निर्धारित घोषणा के बाद विद्यालय का मुख्य दरवाजा बंद करवा दिया। हमे इतनी परेशानी चुवान के दौरान नहीं आयी जितनी अब, इतने प्रपत्र और इतने लिफाफे थे पता ही नहीं चला रहा था की कौनसा प्रपत्र भरना है और कौनसा नहीं। किस प्रपत्र को किस लिफाफे में डालना है और किसे नहीं। सबसे बड़ी समस्या यह की सब प्रपत्र अंग्रेजी में। पता नहीं क्यों हम अंग्रेजी के इतने अधीन हैं। आज 70 साल बाद भी अंग्रेजी का मोह नहीं छूटा और ढंग से सीखा/सीख भी नहीं पाये।
एक किस्सा तो रोचक था। अंग्रेजी में एक लाइन समझ में नहीं आ रही थी।
"गुरप्रीत जी, इसका अर्थ क्या है। इसमें क्या भरना है।"- अचलाराम जी ने पूछा।
मेरी समझ में भी कुछ नहीं आया। तब PO-2 मुकेश जी ने 'गूगल ट्रास्लेट' का सहारा दिया। गूगल ट्रास्लेट ने तो नजारा ही बदल दिया। गूगल का उत्तर था " काम में लिए गये बर्तनों की सख्या।"
'यह तो बर्तनों की सख्या बता रहा है, जो हमने काम में लिए थे।"-मुकेश जी ने कहा।
"आप भी मजे ले रहे हो। इनमें बर्तनों का कहां संबंध है।"-मैंने कहा।
" तो फिर चुनाव केडिडेट के निशान की बात होगी?"
"भाई उनमें कहां बर्तन होते हैं। भाजपा का कमल क्या बर्तन होगा। हाथी और हाथ कहां बर्तन होंगे।"
"यार, गूगल तो यही बता रहा है।"
"मैं दूसरी पार्टी से पूछ कर आता हूँ।"- अचलाराम जी बाहर को भागे।
पांच बजे वोटिंग खत्म हुयी लेकिन हम आठ बजे तक लगे रहे। सभी कागजों को समझना और भरना। कुछ गलत नहीं भरना और अतिमहत्वपूर्ण कागजों को खाली नहीं छोड़ना। जिन लिफाफों में कोई सूचना नहीं है उनमें एक रिक्त सफेद कागज पर NILL लिखकर डालना था। उन लिफाफों को भी निर्धारित पैकेट में बंद करना था।
दोनों पार्टियां 8:10 PM पर मीठन गांव से रवाना हुयी। वापसी पर भी वही चैक पोस्ट की प्रक्रिया से गुजरते हुए। रात को लगभग नौ बजे 'नवीन भवन सिरोही' पहुंचे।
रात्रि के कुछ दृश्य |
यह रात का मेला दर्शनीय था। चारों तरफ मतदान कर्मचारी अपनी मशीनों के साथ घूम रहे थे। खूब भीड़ थी। कुछ ऐसे भी थे जो बूथ से सील आदि नहीं लगाकर थे, वे यहाँ बैठे अपनी मशीनों और लिफाफों को सीलिंग कर रहे थे। अगर आपके काम में थोड़ी सी भी कमी रह गयी तो आपकी मशीन जमा नहीं होगी।
अचलाराम जी और गजेन्द्र जी EVM, VVPAT आदि मशीने जमा करवाने की लाईन में काउंटर नंबर एक में लगे। मुकेश जी अस्वथ होने के कारण एक तरफ बैठ गये। मैं दो नंबर काउंटर पर लिफाफे जमा करवाने गया। मुझे जहां मात्र आठ-दस मिनट लगे तो वहीं अचलाराम जी को दो घण्टे लाइन में खड़ा रहना पडा़।
लगभग रात के बारह बज गये थे जब हमारा दल सभी कार्यों से निवृत्त होकर अपनी OD (Office Duty) लेकर आया।
वहीं मेरे मित्र छोटे लाल जी, दयानंद जी और हुकम जी अपने कार्य से निवृत्त होकर यहाँ से शहर को निकल गये थे।
अचलाराम जी और गजेन्द्र जी EVM, VVPAT आदि मशीने जमा करवाने की लाईन में काउंटर नंबर एक में लगे। मुकेश जी अस्वथ होने के कारण एक तरफ बैठ गये। मैं दो नंबर काउंटर पर लिफाफे जमा करवाने गया। मुझे जहां मात्र आठ-दस मिनट लगे तो वहीं अचलाराम जी को दो घण्टे लाइन में खड़ा रहना पडा़।
लगभग रात के बारह बज गये थे जब हमारा दल सभी कार्यों से निवृत्त होकर अपनी OD (Office Duty) लेकर आया।
वहीं मेरे मित्र छोटे लाल जी, दयानंद जी और हुकम जी अपने कार्य से निवृत्त होकर यहाँ से शहर को निकल गये थे।
मशीन जमा करवाने के दौरान लाइन में श्याम जी। |
मैं और श्याम जी अपने कार्य से निवृत्त होकर एक कैंटीन पहुंचे वहाँ से खाना खाकर निपटे तो मनोज जी की काॅल आ गयी। रात का लगभग एक बज गया था। मित्र सुरेश जी भी कुछ समय पश्चात आ पहुंचे।
हम कैम्पस से बाहर आये,पार्किंग में बहुत कम साधन थे। अब घर जाने के लिए कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही थी। पैदल से सड़क पर घूम रहे थे। कुछ आगे जाने पर हम हमारे कुछ और शिक्षक मित्र भी नजर आये जो किसी साधन के इंतजार में थे।
अर्धरात्रि को माउंट आबू के लिए वाहन मिलना मुश्किल था। अब जाये तो कहां जाये। बस सड़क पर चल रहे थे। तभी एक स्कूल बस कैम्पस की तरफ से आयी। वह चुनाव की ही बस थी। उस बस में हमें सीट मिल ही गयी। यह वही बस थी जिससे हमारी पोलिंग पार्टी गयी थी।
रात को 3:30 AM हम घर पहुंचे।
मेरे जीवन का यह चुनाव यादगार रहेगा।
अर्धरात्रि को माउंट आबू के लिए वाहन मिलना मुश्किल था। अब जाये तो कहां जाये। बस सड़क पर चल रहे थे। तभी एक स्कूल बस कैम्पस की तरफ से आयी। वह चुनाव की ही बस थी। उस बस में हमें सीट मिल ही गयी। यह वही बस थी जिससे हमारी पोलिंग पार्टी गयी थी।
रात को 3:30 AM हम घर पहुंचे।
मेरे जीवन का यह चुनाव यादगार रहेगा।