हर वर्ष फागुन में आती होली
हर बार नए रंग लाती होली।
कभी गुब्बारे कभी गुलाल
कहीं कोई पिचकारी लाल
सबको रंग रंग जाती होली।
कभी किसी की चुनरी भीजे
कभी कोई बलमा पर रीझे
सबका मन हर्षाती होली।
कोई लेता गुझिये का मज़ा
किसी पे चढ़ा है भंग का नशा
क्यूँकि ये है मदमाती होली।
कुछ लोग क्यूँ खेलते खून से होली
नहीं समझते प्यार की बोली
किसी को वैर नहीं सिखाती होली।
आओ मिलकर प्रण करे
हर मन में ख़ुशी का रंग भरे
और खेले प्रेम रंग बरसाती होली।।
- मंजू इंखिया
प्राध्यापिका-हिंदी
लेबल
- अगाई माता (1)
- अमृतसर यात्रा (1)
- ओरिया (1)
- कविता (10)
- गजल (1)
- चन्द्रावती (2)
- चुनाव (3)
- जयपुर (1)
- बाल कहानी (3)
- मंजु श्री (1)
- माउंट आबू (6)
- मेरा विद्यालय (1)
- यात्रा वर्णन (11)
- रणथम्भौर (1)
- राजस्थान (2)
- राजस्थान के किले/गढ/महल (2)
- राजस्थान के किले/गढ/महल/मंदिर (1)
- लघुकथा (12)
- लेखक (1)
- व्यंग्य (1)
- संपादक (1)
- संस्मरण (1)
- हवामहल (1)
- Bailey's walk (1)
- eraic's path (1)
सोमवार, 13 मार्च 2017
होली- कविता- मंजु
सदस्यता लें
संदेश (Atom)