365 झरोखों का हवामहल
राजस्थान की राजधानी जयपुर अपनी ऐतिहासिक और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। अपनी स्थापना आमेर से लेकर वर्तमान जयपुर शहर तक इसने विविध रुपों में स्वयं का श्रृंगार किया है। कभी आमेर था तो कभी गुलाबी नगरी तो कभी जयपुर।
जयपुर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना समेटे हुये है। यहाँ के विभिन्न महल और मंदिर पर्यटकों को सहज ही आकृष्ट करते हैं।
जयपुर शहर के हृदय स्थल में स्थापित है हवामहल। यह अपने नाम के पूर्णतः अनुरूप है।
दिनांक 20.07.2021 को मैं अपनी अर्द्धांगिनी कर्मजीत कौर के साथ हवामहल घूमने का विचार बनाया और दोपहर को हम लगभग 12:30 PM हवामहल पहुंचे। हवामहल- जयपुर
मैं पिछले दो दिन से जयपुर ही था। वैसे हवामहल का यह मेरा द्वितीय भ्रमण है इस से पूर्व मित्र अंकित के साथ यहाँ आ चुका हूँ।
हम दोनों ने टिकट खिड़की से सौ रुपये में दो टिकट ली। और हवामहल में प्रवेश किया।
अब कुछ हवामहल के इतिहास पर दृश्य डाल लेते हैं। प्रवेश द्वार पर एक शिलापट्ट था जिस पर निम्नांकित जानकारी दी गयी थी।
'बड़ी चौपड़ स्थित हवामहल का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह(1778-1803) ने 1799 ई. में करवाया था। इसके वास्तुकार उस्ताद लालचंद थे।
इस दो चौक की पांच मंजिली इमारत के प्रथम तल पर शदर ऋतु के उत्सव मनाये जाते थे। दूसरी मंजिल जड़ाई के काम से सजी है, इसलिए इसे रतन मंदिर कहते हैं। तीसरी मंजिल विचित्र महल में महाराजा अपने आराध्य श्री कृष्ण की पूजा/आराधना करते हैं। चौथी मंजिल प्रकाश मंदिर है और पांचवी हवा मंदिर जिसके कारण यह भवन हवामहल कहलाता है।