उन्होनेँ मुस्कुराते हुए घर मेँ प्रवेश किया और अपनी पत्नी से बोले-"ये लो रुपये।" "आज सुबह-सुबह इतने रुपये?"-पत्नी ने आश्चर्य से पूछा। उन्होँने हँसते हुए उत्तर दिया,-"तुम जिसे बुरा कहती हो, यह उसी सट्टे की कमाई है। मुन्ना भी कितने दिनोँ से स्कूल फीस के लिए कह रहा था, उसे भी फीस हेतु रुपये दे देना।"
"मुझे नहीँ चाहिए ऐसी कमाई।"-कहती हुई श्रीमती जी अंदर चली गई-"ऐसे रुपयोँ से बच्चा अच्छे संस्कार नहीँ ले पाएगा।"
"अरे! पैसा तो पैसा है, क्या अच्छा क्या बुरा।"
दूसरे दिन शाम को घर मेँ घुसते ही देखा श्रीमती जी गुस्से मेँ खङी है एवं पास ही मुन्ना सहमा सा खङा है।
श्रीमती जी से पूछा-"क्या बात है ?"
श्रीमती जी ने उत्तर दिया-"स्कूल से फोन आया था कि कल तक मुन्ने की फीस जमा नहीँ करवाई तो स्कूल से नाम काट दिया जाएगा।"
"पर इसे तो फीस के रूपये कल ही दिये थे", -वे आश्चर्य से बोले और मुन्ने से पूछने लगे-"मुन्ना कहाँ है वो रुपये।"
बच्चे ने रोते हुए उत्तर दिया-"वो कल मैने सट्टा लगा दिया, सोचा आपकी तरहं मुझे भी बहुत सारे रूपये मिल जाऐंगे।"
"क्या ?"-मुहँ खुला रह गया, गलती स्वयं की थी, और वे मन हि मन सोचने लगे-"बच्चा जैसे संस्कार सिखेगा, वह तो वैसा हि बनेगा।।"
-दृष्टिकोण (अंक 13-14)
लघुकथा अंक 2014
कोटा, राजस्थान।
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