भारत-पाक मेँ परस्पर बढते तनाव के कारण दोनोँ तरफ ही सीमा पर सेना तैनात
कर दी गई। सीमा के समीप बसे गाँवोँ को पलायन का आदेश दे दिया गया।
राजस्थान के मरुस्थल मेँ सीमा पर बसे अनेक गाँव पलायन कर गये।
ऐसे हि एक गाँव का काफिला अपने परिवारजनोँ के साथ सामान लिए चल पङा।
समझदार स्त्री-पुरुषोँ मेँ युद्ध का डर तो बाल-बच्चे इससे बेखबर अपने
पशुओँ के साथ चल रहे थे। तप्त मरुस्थल, गर्म हवा, धूल के बवण्डर, पानी का
कहीँ नामोँ-निशान तक ना था। प्यास से सभी व्याकुल थे।
चारो तरफ उडते रेत मेँ रास्ता खोजना भी मुश्किल था, वहाँ पानी कहाँ।
दूर-दूर तक विरान मरुस्थल। लंबा सफर तय करने के पश्चात दूर पेडोँ का समुह
दिखाई दिया तो सभी मेँ एक नवीन स्फूर्ति पैदा हुई। पास जाकर देखा तो वहाँ
एक झोपङी भी थी। झोपङी मेँ एक वृद्ध पानी के मटके लिए बैठा था। वृद्ध
उनको देख कर प्रसन्न हुआ, सभी को पानी पिलाया। सभी ने तृप्त होकर पानी
पिया और वृद्ध को आशीष देने लगे। विश्राम हेतु सभी वहीँ बैठ गये।
बातोँ का सिलसिला चला।
"बाबा, आप बहुत पुण्य का कर्म कर रहे हो।"
वृद्ध ने बिना प्रतिक्रिया दिये प्रश्न पूछा,-"आप लोग कौन हो ?"
"बाबा, हम तो भारत-पाक सीमा पर बसे एक गांव से है, जो पलायन के आदेश से
वहाँ से उठ चले।"
"हम तो परेशान हो गए निरंतर इस तनाव से।"-किसी एक ने कहा।
"इससे तो अच्छा है, युद्ध हो जाए।"-दूसरे ने समर्थन किया।
वृद्ध चुपचाप सुनता रहा, उसके चेहरे पर निराशा छा गई।
"युद्ध हि अब अन्तिम निर्णय है।"
"बाबा, आपका क्या विचार है ?"-किसी ने पूछा।
"मैँ नहीँ चाहता कि युद्ध हो।"-वृद्ध ने शांति से कहा।
"क्योँ ?"-आश्चर्ययुक्त समवेत स्वर।
वृद्ध ने कहा,-"मेरा एक मात्र पुत्र युद्ध मेँ शहीद हो चुका है। मेरी तरह
ना जाने कितने लोगोँ के एकमात्र पुत्र सेना मेँ है, क्या उनका सहारा नही
खो जाएगा। मैँ इस मरुस्थल मेँ पानी पिलाने का कार्य इसलिए करता हूँ, शायद
इस थोङे से पुण्य से युद्ध ना हो। किसी का सहारा ना खो जाए।"
वृद्ध व्यक्ति की आँखेँ नम हो गई। अब वहाँ मौन पसर गया।
= शब्द सामयिकी (राजस्थान)
जन.-मार्च-2012.
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