मंगलवार, 20 मार्च 2012

नास्तिक

                      नास्तिक

‘‘यह लडका तो पूर्णतः नास्तिक है’’
‘‘यह तो कभी मन्दिर भी नहीं जाता’’
 नवयुवक के प्रति अक्सर ये टिप्पणियां सुनाइ दे जाती थी
यह सत्य है कि वह नवयुवक  क भी धार्मिक स्थलों पर अपना सिर झुकाने या प्रवचन सुनने नहीं गया।अगर कहीं जाता है,तो वह है,खेल का मैदान।
‘‘खेलने के अतिरिक्त इसे कुछ सूझता ही नहीं ।यह तो घोर नास्तिक है’’
एक और टिप्पणी।
एक दिन उस नवयुवक ने इन टिप्पणियों का उतर दे दिया।
कार्यक्रम मे भाग लेने जा रहे थे।वही मन्दिर के पास धूप में एक दुर्बल गाय बीमार पडी थी ।दो तीन कुते गाय को घेरे खडे थे। एक दो लोगो ने कुतों को भगाया,कुते फिर आ जाते ।
तभी वह नवयुवक अपने साथियों के साथ वहा से गुजरा तो,उस कि घावों का उपयाचार किया ,चारे पानी कि व्यवस्था की।उस दिन नवयुवक अपना खेल छोडकर गाय के पास बैठ गया। दूसरी तरफ अब भी मन्दिर मे कथा सुनने जा रहे थे।
   
                                               -  गुरप्रीत सिंह                
                                              

2 टिप्‍पणियां:

http://bal-kishor.blogspot.com/ ने कहा…

mandir jane na jane se koi nastik ya aastik nahi hota ,achcha prayas hai.

Unknown ने कहा…

एक अच्छी लघुकथा।