मंगलवार, 20 मार्च 2012

धर्म

      धर्म

नगर  में यहां पसरा है सन्नाटा
सिसकती है हवाए

निस्तब्ध आसमान देखता है,
बेबस  धरा पर
धर्म के नाम हुए अधर्म।

सफेद दीवार पर रक्त के छींटे
जो कभी नही बता सकते
किस धर्म के है।

गली  में पडी क्षत-विक्षत
अर्धनग्न लाशें
धर्म से विमुख।

जलते हुए घरों
रह रह कर उठता है विलाप,
दर्द से भी भीगा क्रंदन
चीर जाता है नीरवता
और दर्द कभी धर्म नहीं देखता।

ये सब हुआ है
उसी धर्म के नाम पर,
‘‘जो जोड़ता है,तोड़ता नहीं।’’
                    

2 टिप्‍पणियां:

Santosh Kumar ने कहा…

अच्छे नैतिक विचार ...सृजन जारी रखें.

गुरप्रीत सिंह ने कहा…

thanks