रविवार, 8 मार्च 2020

यात्रा Eraic's Path की

यात्रा ERAIC'S PATH की
अर्बुदा मंदिर से हन्नीमून पाॅइंट तक
धन्नाराम, विशाल, दिनेश, मनोज राजोरा, गुरप्रीत सिंह, वीरेन्द्र
कई दिनों से कोई यादगार यात्रा नहीं की थी। इसलिए इस अवकाश दिवस पर घूमने का कार्यक्रम तय किया गया। माउंट आबू में यात्रा करने का अर्थ है जंगल और पहाड़ों से मिलना, उनको समझना और उनके साथ घूमना। इसलिए इस बार Eraic's Path पर घूमने का कार्यक्रम तय किया गया। माउंट आबू में ऐसे कुछ रास्ते हैं जो आपको जंगल की यात्रा करवाते हैं। ऐसा ही एक और रास्ता है Bailey's walk का और यह रास्ता
समतल है। आप पहाड़ के साथ-साथ लगभग 2-3 किलोमीटर घूम सकते हो। सनसेट से अगाई माता (नक्की लेक) तक का सफर। यह यात्रा हम पूर्व में कर चुके थे। अब तो Eraic's Path को देखना था। 

           रविवार का दिन वैसे हमारे लिए व्यस्तता का दिन होता है। घर की सफाई, कपड़े धोने जैसे काम काफी होते हैं,लेकिन कभी कभार व्यस्तता के बीच अवकाश का अवसर मिल ही जाता है। विद्यालय में होली का अवकाश है और उसके साथ एक रविवार भी शामिल हो गया। इस अवकाश पर मैं और मनोज दोनों घर नहीं गये। दिनांक 8,9,10- 03-2020 तक तीन दिन का अवकाश है, इसलिए इस रविवार (8 मार्च) को घूमने का विचार बनाया।
हम लगभग ग्यारह बजे घर से निकले। मैं (गुरप्रीत सिंह) मित्र मनोज राजोरा, विद्यार्थी धन्ना राम (11 art), विशाल जांगिड़(12 art), पूर्व विद्यार्थी दिनेश कुमार और एक पूर्व विद्यार्थी का भाई वीरेन्द्र।
           हमने दिनेश को ही बोला था वह अपने साथ इन विद्यार्थियों को लाया जिन में से वीरेन्द्र जंगल का अच्छा जानकार था। और उसकी जानकारी का लाभ उठाते हुए यह यात्रा सम्पन्न की।
        यह रास्ता अर्बुदा मंदिर से आरम्भ होकर जंगल और पहाडियों के बीच से होता हुआ हन्नीमून पाॅइंट के गणेश मंदिर के पास निकलता है। यह यात्रा लगभग पांच किलो मीटर की थी जिसमें हमें लगभग चार घण्टे लग गये।
           अर्बुदा मंदिर से थोड़ी दूरी पर एक मोहल्ले को पार करने पर एक बाॅर्ड लगा है Eraic's Path Natural trail का। यहाँ से दो रास्ते निकलते हैं। हम पहले भी राजकुमार सर (आबू के चर्चित पर्वतारोही, स्नैक कैप्चर, अध्यापक) के साथ टेबल राॅक तक घूम चुके थे। हमने इस बार दूसरा रास्ता चुना।           आरम्भ में रास्ता पत्थरों से तैयार किया गया है। काफी दूर तक पत्थरों की पगडंडी ने साथ दिया लेकिन घने जंगल के अंदर जाकर यह रास्ता खत्म हो जाता है। मुझे लगा जैसे यह रास्ता कह रहा है मैंने आपको जंगल में पहुंचा दिया आगे का रास्ता स्वयं खोजो और सफर का आनंद लो। जहाँ तक पत्थरों से निर्मित रास्ता था वह सफर सबसे मुश्किल था क्योंकि यहाँ से पहाड़ पर चढाई थी। आगे जहाँ रास्ता खत्म होता है वहाँ हम पहाड़ के उपर थे। और यहीं से एक अलग तरह का रास्ता था। बरसात का पानी बह-बह कर अपने लिए मार्ग निर्धारित कर लेता है, उन्हीं निर्धारित मार्गों से हमें आगे बढना था। यहीं एक काले रंग की समतल चट्टान पर अल्प विराम किया और पहाड़ियों और पेड़-पौधों को निहारते हुए, तस्वीरें लेते हुए आगे बढे। 

चल तुझसे भी बात कर लेते हैं।                हम थक गये भाई             
फरवरी आते-आते जंगल सूखने लगता है। उसकी हरियाली गायब हो जाती है। यह तो वैसे भी मार्च का महिना था। जंगल यात्रा का वास्तविक आनंद तो बरसात के समय होता है जब चारों तरफ हरियाली होती है, कल- कल करता जल होता है, पेड़ फलों से भरे होते हैं। तब एक अलग ही अनुभूति होती है। अब तो चारों तरफ सूखा-सूखा सा नजर आता है।

          कहीं पहाड़, कहीं समतल, कहीं बरसात से निर्मित रास्ते से हम आगे बढ रहे थे। कहीं कटीली झाड़िया हमें परेशान कर रही थी तो कभी-कभी हाथ -पैर पर अपने निशान भी छोड़ रही थी। मेरे अर्द्ध बाह की टी शर्ट थी इसलिए निशान बनते चले गये। मैं अक्सर सबसे पीछे रह जाता था, क्योंकि मुझे तस्वीरें लेनी थी।
"अरे! सर कहां रह गये।"- दिनेश की आवाज आयी।
" वो फोटो ले रहे हैं।"- मनोज ने कहा।
"मुझे लगा कहीं सर थक कर बैठ तो नहीं गये।"
"लो मैं आ गया"- कहता हुआ मैं भी उनमें पुन: शामिल हो गया।
         लंबा सफर तय करने के बाद या तू कहें आधा रास्ता पार करने के पश्चात हम टेबल राॅक पर पहुंचे। इस रास्ते का यह पहला पड़ाव था। पूर्व में हम राजकुमार सर के साथ इसी चट्टान तक आये थे लेकिन इस बार सफर इससे आगे का था। यहाँ हम काफी समय तक रुके। यहाँ पहाड़ी से नीचे दृश्य मनोरम दिखाई देता। हरे-भरे खेत, बलखाती साबरमती नदी, पानी का डैम आदि दृश्य मन को बहुत अच्छे लगते हैं। 


 
टेबल राॅक पर विश्राम

यहाँ हमने काफी देर तक फोटोग्राफी की। यह इस रास्ते का यादगार स्थल है। इस राह से जंगल की यात्रा करने वाले इस चट्टान पर अवश्य आते हैं और कुछ लोग तो यहाँ से सनसेट देखने भी आते हैं। हालांकि यह आने वाले माउंट के लोग ही होते हैं बाहरी लोग यहाँ नहीं आते। क्योंकि घने जंगल के अंदर आना स्वयं में खतरनाक साबित हो सकता है। यहाँ तेंदुआ और भालू जैसे जानवर पाये जाते हैं।
       हम लगभग 12:30 बजे तक टेबल राॅक पर थे। यहाँ विश्राम करने के पश्चात आगे का सफर तय करना था। यहाँ से आगे का रास्ता मालूम न था। वीरेन्द्र भाई पहले नीचे उतरे और आगे का रास्ता खोजा उन्हें के द्वारा खोजे गये रास्ते पर हम आगे बढते गये।
      एक खाई को पार करने के पश्चात एक समतल चट्टान पर हमने साथ लाये समोसों का आनंद लिया। हालांकि सभी के लिए एक -एक समोसा पर्याप्त न था फिर भी एक छोटा सा सामूहिक भोज स्मरणीय रहेगा। यहाँ से रास्ता पुनः नीचे की ओर प्रारंभ हो गया था। चट्टान से उतरना काफी सावधानी का काम होता है। जरा सी लापरवाही, पैर फिसला तो आप नीचे गहरी खाई में जा सकते हैं। चट्टानों पर घास सूख कर और भी फिसलन पैदा कर रहा था। 


         यहाँ से आगे एक गुफा मिली। काफी विशाल गुफा। इस गुफा में भी यह दूसरा चक्कर है। लेकिन इस का पूरा भ्रमण आज किया तो पता चला इसकी विशालता का। ऐसा लगता है जैसे कोई छोटा पहाड़ अंदर से खोखला हो गया हो। हर तरफ छोटे-बड़े छेद हैं जो की बरसात के पानी के कारण बन गये है। पहले एक अज्ञात भय भी था की अंदर कहीं कोई जानवर न हो पर यह शंका निर्मूल निकली। फिर तो अंदर फोटोग्राफी का एक लंबा दौर चला। वीरेन्द्र, धन्ना राम और दिनेश ने तो उन छोटे-छोटे छेदों के अंदर से निकले का प्रयास भी किया। गुफा के अंदर जब उपर की तरफ बढे तो आगे पूर्णतः रोशनी दिखाई दी और आगे की तरफ गुफा सुरंगनुमा और छोटी होती चली गयी लेकिन वहाँ से पानी के बहाव के लिए जगह थी वहाँ से भी रोशनी आ रही थी। हम गुफा के नीचे से घुसे और उपर से बाहर निकले।


गुफा  गुफा के बीच के रास्ते खोजते हुए वीरेन्द्र भाई
   आगे कुछ दूर चलने पर एक खाई नजर आयी लेकिन रास्ता गुम हो गया। अब जाये तो कहा जाये। लेकिन हिम्मतवीर धन्ना और विशाल आगे बढे और खाई पार करके पहाड़ी पर चढे और रास्ता खोज लिया।
''आगे रास्ता है क्या?''- दिनेश ने पूछा।
लेकिन वे दोनों सामने की पहाड़ी पर फोटोग्राफी में खो गये।
''हमें ही आगे बढना चाहिए।''-मैंने कहा।
''उन्होंने अपना रास्ता पार कर लिया, अब हमें भी पार करना है।"-मनोज ने कहा।
हम खाई में उतरे और पानी के बहाव वाले रास्ता के साथ आगे बढते गये।
खाई से आगे पहाड़ी पर चढे और यहाँ से फिर रास्ते को तलाशते हुए हम आगे बढते रहे।

         कुछ आगे चलने पर पहाड़ी से नीचे पत्थरों से निर्मित छोटा सा रास्ता दिखाई देने लगा।
"वो रहा रास्ता!"- मनोज जी के स्वर में खुशी थी।
" कहां? "
"ये वहीं रास्ता है जो हमने कुछ दिन पहले हन्नीमून पाॅइंट से देखा था।"- मनोज ने बात स्पष्ट की।
" हां, रास्ता तो दिखाई दे रहा है।"- वीरेन्द्र ने कहा।
अब सभी में नया उत्साह था। नये जोश के साथ आगे बढे और एक छोटी सी चट्टान पार करके हम एक पेड़ की छाया में बैठ गये।
          जिस चट्टान पर हम विश्राम कर रहे थे यहाँ एक विशाल पेड़ जिसकी छाया में बैठे थे और यहाँ से आगे पत्थरों से निर्मित एक रास्‍ता आरम्भ होता है। जैसे ही विश्राम के पश्चात रास्ते पहुंचे तो यहाँ से एक कच्चा रास्ता और नजर आया।
"यह रास्ता कहां जाता है?"- मैंने जिज्ञासावश पूछा।
" चलो सर, इस रास्ते पर ही आगे बढते हैं।"- दिनेश ने कहा।
"पर यह जाता कहां है?"- मनोज ने प्रश्न किया।
" अभी पता लगा लेते हैं।"- दिनेश ने उत्तर दिया।
यह रास्ता समतल था, कहीं कोई पहाड़ी नहीं, कोई चट्टान नहीं। जंगल का रास्ता ....जंगल...जंगल....
       कुछ आगे बढे तो मनोज ने कहा,-"शायद आगे कोई है, आवाजें आ रही हैं।"
और यह सत्य हुआ। आगे एक पहाड़ी पर ब्रह्मकुमारी वाले कुछ सदस्य एक पहाड़ी पर बैठे थे। जहाँ से आगे नीचे का दृश्य दिखाई देता था। यहाँ बैठने के लिए अतिरिक्त व्यवस्था की गयी थी। सीमेंट के बैच बने हुए थे। एक अन्य पहाड़ी पर चढने के लिए सीढिया बनी हुयी थी। वहाँ का वातावरण बताता था की लोग अकसर यहाँ आते हैं। वहीं उसी पहाड़ी के नीचे लाल रंग से हनुमान जी चित्रित किये गये थे

चट्टान पर बैठे BK वाले, चट्टान के नीचे चित्रित हनुमान जी

वहीं कुछ प्रेमीवर्ग ने अपने नाम‌ के साथ कुछ आकृतियाँ भी उकेर रखी थी। मैं अक्सर इन नामों को पढकर सोचता हूँ क्या ये यहाँ नाम लिखने के लिए आते है, जो की साथ में रंग भी लेकर आते हैं। 

        यहाँ अल्प समय बिताकर हमने वापसी की। कुछ दूर चल कर नये रास्ते से होते हुए पत्थरों से निर्मित रास्ते पर जा पहुंचे। यात्रा अंतिम चरण में थी। यहाँ से पुनः एक पहाड़ी पर रास्ता पहुंच गया। लेकिन रास्‍ता साफ और सुगम था इसलिए कोई परेशानी नहीं हुयी।
         कुछ दूर चलने पर एक छोटा मकान नजर आया। कभी-कभी आश्चर्य भी होता है की कौन लोग रहे होंगे जिन्होंने यहा पहाड़ी पर घर बनाये और क्यों बनाये। मुझे हमेशा ऐसे तथ्यों को खोजने और समझने की जिज्ञासा रहती है। वह दो चट्टानों के मध्य एक छोटा सा कमरा था। जिसके उपर 
लिखा था 'आदेश गुफा'।

 जिसमें एक 'धुणा' (हवन कुण्ड) भी था। उसके अंदर एक छोटी सी रसोई भी थी। 
आदेश गुफा
  यही पास में एक और कमरा था जिसके अंदर भी एक छोटा सा कमरा था। ये किसने और कब बनवाये अब यह पता लगाना तो मुश्किल था। एक कमरे में हवन कुण्ड (धूणा)बना हुआ था। जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है की ये किसी साधु-संन्यासी का विश्राम स्थल रहा होगा।
यहाँ से कुछ घुमावदार रास्ते को पार करते हुए , चट्टानों पर उछलते हुए हम दो बजे के लगभग गणेश मंदिर पहुंचे। गणेश मंदिर से पानी पिया और मुख्य सड़क की ओर जाने की सीढ़ियों की तरफ बढ चले।
         यह रास्ता गणेश मंदिर को अर्बुदा के मंदिर से जोड़ता है। शायद ये रास्ता तब बना होगा जब डामर के सड़क नहीं होगी इसलिए पहाड़ो के अंदर से ये रास्ते बने होंगे।
हालांकि इन विषयों पर कुछ कहां नहीं जा सकता लेकिन आज का ये सफर हमारे लिए यादगार रहेगा।
         गणेश मंदिर के पास हन्नीमून पाॅइंट और सनसेट पाॅइंट है, वहाँ काफी भीड़ थी लेकिन हमारा वहाँ जाने का कोई ईरादा न था इसलिए हम अपने घर की तरफ प्रस्थान कर गये।
        मुख्य सड़क पर लगे Eraic's Path पर सामूहिक फोटो लेने के बाद जैसे ही आगे बढे तो मेरे मोबाइल में गीत चल रहा था,- "मुसाफिर हूँ यारो.......।"


चट्टान/पहाड़ियाँ जो मुझे आकृष्ट करती हैं।

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत खूब। सुन्दर यात्रा संस्मरण।
--
रंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।

SVN Library ने कहा…

नमस्ते जी, आपकी हर बार उत्साहवर्धक टिप्पणी नयी प्रेरणा देती है।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

बेहद रोमांचक यात्रा रही गुरप्रीत, भाई। ऐसी और भी यात्राएँ और उनके वृत्तांतों का इंतजार रहेगा।

Ratan choudhary ने कहा…

बहुत बढ़िया।

Unknown ने कहा…

Nice guru

शिवांश दीक्षित ने कहा…

पैरों में चक्कर है आपके पर अब जंजीर पद ही गई

Sahitya Desh ने कहा…

अब तो एक से दो हो गये।‌ दोनों घूमने जायेंगे।।