शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

मित्रता


 दो मित्र थे। अत्यंत घनिष्ठ मित्रता, साथ खेलना, घूमना। दोनोँ मेँ कभी
 झगङा तक नहीँ हुआ।
 -एक बार दोनोँ मित्रोँ मेँ किसी बात पर बहस हो गई ,परिणाम निकला-नाराजगी।
 प्रथम मित्र ने सोचा,-"वह कैसा मित्र जो बिना कारण नाराज हो जाए।"
 द्वितीय मित्र ने सोचा,-"व्यर्थ की मित्रता थी। सच्चा मित्र तो वह होता
 है जो किसी भी बात का बुरा न माने।"
 कुछ समय व्यतीत हुआ। दोनोँ मित्रोँ का गुस्सा कुछ कम हुआ।
 प्रथम मित्र ने सोचा,-"मेरी गलती तो है नहीँ। मैँ उसे मनाने क्योँ जाऊँ।"
 द्वितीय मित्र ने सोचा,-"मुझे भी इतनी आवश्यकता नहीँ कि मैँ उसे मनाऊँ।"
 कुछ समय और व्यतीत हुआ। दोनोँ मित्रोँ को बचपन की मित्रता याद आने लगी।
 ह्रदय विचलित हुआ।
 प्रथम मित्र ने सोचा,-"माना गलती मेरी थी। पर वह तो छोटा है। एक बार तो
 मनाने आ सकता है।"
 द्वितीय मित्र ने सोचा,-"अगर गलती मेरी थी, पर वह तो बङा है। मेरी गलती
 क्षमा भी तो कर सकता है। सिर्फ एक बार मनाने जाऊँगा।"
 यह सोच कर द्वितीय मित्र ने अपने प्रथम मित्र से मिलने हेतु घर से चलने
 की तैयारी की । अपने घर का दरवाजा खोला  तो सामने उसका द्वितीय मित्र खङा
 था। दोनोँ ने एकपल एक दूसरे को देखा और फिर एक दूसरे की बाँहोँ मेँ समा
 गये। सारे गिले शिकवे आंसुओँ मेँ बह गये।



 -त्रिवाहिनी(हरियाणा)
 जु.-सित.-2013

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