मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

पहाड़ पर क्राॅस


माउंट आबू में प्रसिद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों के अलावा भी बहुत से छोटे-छोटे ऐसे स्थान है जो देखने योग्य हैं। ऐसे कई स्थान जो पुस्तकों में वर्णित नहीं, मैप पर नहीं और जहाँ पहुंचने के लिए सुगम रास्ता नहीं है।

                 ऐसा ही एक स्थान है 'पहाड़ पर क्राॅस'। माउंट आबू के प्रसिद्ध पोलो मैदान से एक पहाड़ी पर 'प्रभु यीशु का क्राॅस' नजर आता है। मेरे (गुरप्रीत सिंह) और मित्र मनोज कुमार राजोरा में कई बार इस विषय पर चर्चा होती थी कि उस पहाड़ी पर कब चलें। कभी समय न मिला, कभी इच्छा न हुयी तो कभी स्थानीय साथी न मिला जो उस पहाड़ी का रास्‍ता जानता हो।
                  रविवार (10.02.2019) को समय मिल ही गया। मैं, मनोज और हुकम नामा जी तीनों निकल पड़े।
                  "भाई, वहाँ जाने का रास्ता मुझे नहीं मालूम।"-मैंने कहा।
                  " जब निकल ही लिए तो रास्ता भी मिल जायेगा। किसी से पूछ लेंगे।"- हुकम‌ जी मे कहा।
                  इतना तो अनुमान था की क्राॅस वाली पहाड़ी गौमुख के रास्ते में आती है। एक बार जब हम गौमुख गये थे। तब वह क्राॅस देखा था। पहाड़ की एक यह विशेषता है की उस पर जो 'चीज' है वह दूर से तो नजर आती है लेकिन जब उसके पास पहुँचते हैं तो वह नजर नहीं आती और रास्ता, वह तो ढूंढना भी मुश्किल हो जाता है।
     ‌‌‌‌     रास्ता था ही ऐसा की चलते-चलते साँस फूलने लगता है। पहाड़ के रास्ते पर तो मजबूत पांव का आदमी ही चल सकता है। क्राॅस वाला पहाड़ तो नजदीक था लेकिन थकान भी भरपूर थी।      

               हम भी एक बार तो उस रास्ते से आगे निकल गये थे। आगे एक धार्मिक संस्थान था। वहाँ से क्राॅस वाली पहाड़ी का रास्ता पूछा तो पता चला की उसके लिए एक छोटा सा रास्ता है जो की पीछे रह गया।
                      उस पहाड़ी पर पहुंचने के लिए एक अनघड़ पगडंडी थी। उस घुमावदार रास्ते से हम उपर पहुंचे। पहाड़ी पर चढने का रास्ता जरा मुश्किल था, पर लंबा न था।
                      उपर पहुंच तो एक अलग ही नजारा था।‌ प्रभु यीशु की एक विशाल मूर्ति वहाँ स्थित थी। सफेद पत्थर से निर्मित, प्रभु यीशु सलीब पर लटके हुए। उपर पहुंचे तब तक थक गये थे।‌ उस पहाड़ी पर एकमात्र प्रभु यीशु की उस विशाल मूर्ति के  अतिरिक्त और कुछ नहीं था। मूर्ति की छाया में हमने विश्राम किया। वहाँ शांति थी, शीतल हवा थी।
            वहाँ पर घास खूबसूरत थी। घास सूख चुकी थी लेकिन उसका सौन्दर्य यथावत था। अगर वह घास  हरी होती तो नयन कभी भी तृप्त न होते। 

  हुकम जी ने तो दिल लूटा दिया घास पर। हुकम जी का विशेष शौक फोटोग्राफी है। उस घास पर जो एक बार लेट फिर तो विभिन्न एंगल से फोटोशूट होता रहा।

    ‌‌मनोज सर को घूमता का शौक है लेकिन फोटो का नहीं इसलिए वे पहाड़ी पर बैठ एक साधक की तरह शहर को निहारते रहे।


                       यहाँ से पूरा माउंट आबू शहर नजर आता था। कुछ समय हम तीनों मित्रों ने वहाँ फोटोग्राफी की। एक फोटो के  दौरान, उछलते हुए घुटने में दर्द हो गया। दर्द के कारण काफी परेशानी हुयी। हालांकि वह फोटो बहुत अच्छी आयी थी।

                       पहाड़ी पर उस मूर्ति के अतिरिक्त और कुछ न था। थकान और प्यास से परेशान थे। फोटोग्राफी और विश्राम के पश्चात हमने वहाँ से वापसी की।
                       लगभग तीन घण्टे की यह यात्रा रोचक और यादगार रही।

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

बधाई व शुभकामनाएं ।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

रोचक यात्रा रही। कभी मौका लगा तो जाऊँगा इधर।

Unknown ने कहा…

Ati sunder