रविवार, 8 अप्रैल 2012

निशानें


Add caption
तारीफ करते रहे जिन नजरों  की
हम पर ही वो निकले
हर महफिल  में जिसे अपना कहा,
आज वो हि बेगाने निकले
सोचा, एक रात ठहर जाऐगे यहां,
इस शहर  में तो सभी बेगाने निकले 
बढ गइे है तेरे शहर में गुस्ताखियॉं,
यहां तो हर मोड पे मयखानें निकले
हमने तो हर मोड पे धोखा खाया,
जबसे रिश्ते हम निभाने निकले
सोचा था,लौट आएंगे वो,
फिर उनके इंतजार में कइ जमानें निकले
सच्ची मोहब्बत का को रहनुमा ना मिला
जो मिले ,सब मोहब्बत पे दाग लगाने निकले

रविवार, 1 अप्रैल 2012

मेरे विचार

                      नमस्कार

ब्लॉग के क्षेत्र में यह मेरा प्रथम कदम है। समस्त ब्लॉग पढने वाले पाठकों मेरा नमस्कार।
सर्वप्रथम प्रस्तुत ‘‘धर्म’’ पर है मेरे विचार एक कविता और लधुकथा के माध्यम से की वर्तमान में धर्म  का स्वरूप क्या है,और क्या होना चाहिए।
अगर  धर्म शब्द की व्याख्या की जाए तो यह शब्द जितना छोटा है इसकी व्याख्या उतनी ही बड़ी है। फिर भी संक्षेप में कुछ कहना हो तो ‘‘अहिंसा परम धर्म है।’’ अर्थात मन,वचन और कर्म से भी हिंसा नहीं करनी चाहिए,और ना ही हिंसा का समर्थन करना चाहिए।
कुछ शाब्दिक,तकनीकी गलतियां है,जो धीरे धीरे दूर होंगी।
मैं उन मित्रों का धन्यवाद करता हॅू,जिन्होने मेरी इस ब्लॉग में मदद की है।

पाठक मित्रों से उम्मीद है कि वो मार्ग दर्शक होंगं। प्रस्तुत रचनाओं पर अपने विचार जरूर दंे।
धन्यवाद।
                                                                                     गुरप्रीत सिंह
                                                                                        राजस्थान

मंगलवार, 20 मार्च 2012

नास्तिक

                      नास्तिक

‘‘यह लडका तो पूर्णतः नास्तिक है’’
‘‘यह तो कभी मन्दिर भी नहीं जाता’’
 नवयुवक के प्रति अक्सर ये टिप्पणियां सुनाइ दे जाती थी
यह सत्य है कि वह नवयुवक  क भी धार्मिक स्थलों पर अपना सिर झुकाने या प्रवचन सुनने नहीं गया।अगर कहीं जाता है,तो वह है,खेल का मैदान।
‘‘खेलने के अतिरिक्त इसे कुछ सूझता ही नहीं ।यह तो घोर नास्तिक है’’
एक और टिप्पणी।
एक दिन उस नवयुवक ने इन टिप्पणियों का उतर दे दिया।
कार्यक्रम मे भाग लेने जा रहे थे।वही मन्दिर के पास धूप में एक दुर्बल गाय बीमार पडी थी ।दो तीन कुते गाय को घेरे खडे थे। एक दो लोगो ने कुतों को भगाया,कुते फिर आ जाते ।
तभी वह नवयुवक अपने साथियों के साथ वहा से गुजरा तो,उस कि घावों का उपयाचार किया ,चारे पानी कि व्यवस्था की।उस दिन नवयुवक अपना खेल छोडकर गाय के पास बैठ गया। दूसरी तरफ अब भी मन्दिर मे कथा सुनने जा रहे थे।
   
                                               -  गुरप्रीत सिंह                
                                              

धर्म

      धर्म

नगर  में यहां पसरा है सन्नाटा
सिसकती है हवाए

निस्तब्ध आसमान देखता है,
बेबस  धरा पर
धर्म के नाम हुए अधर्म।

सफेद दीवार पर रक्त के छींटे
जो कभी नही बता सकते
किस धर्म के है।

गली  में पडी क्षत-विक्षत
अर्धनग्न लाशें
धर्म से विमुख।

जलते हुए घरों
रह रह कर उठता है विलाप,
दर्द से भी भीगा क्रंदन
चीर जाता है नीरवता
और दर्द कभी धर्म नहीं देखता।

ये सब हुआ है
उसी धर्म के नाम पर,
‘‘जो जोड़ता है,तोड़ता नहीं।’’