रविवार, 8 अप्रैल 2012

निशानें


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तारीफ करते रहे जिन नजरों  की
हम पर ही वो निकले
हर महफिल  में जिसे अपना कहा,
आज वो हि बेगाने निकले
सोचा, एक रात ठहर जाऐगे यहां,
इस शहर  में तो सभी बेगाने निकले 
बढ गइे है तेरे शहर में गुस्ताखियॉं,
यहां तो हर मोड पे मयखानें निकले
हमने तो हर मोड पे धोखा खाया,
जबसे रिश्ते हम निभाने निकले
सोचा था,लौट आएंगे वो,
फिर उनके इंतजार में कइ जमानें निकले
सच्ची मोहब्बत का को रहनुमा ना मिला
जो मिले ,सब मोहब्बत पे दाग लगाने निकले

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच को कहती खूबसूरत गज़ल


कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

गुरप्रीत सिंह ने कहा…

उत्तम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

shashi purwar ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति