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रविवार, 10 जनवरी 2021

बेमाली माता की यात्रा

बेमाली माता पर्वत की यात्रा
माउंट आबू-सिरोही

हमें यात्रा का जो समय मिलता है वह है रविवार। विद्यालय अवकाश का हम सदुपयोग घूमने में कर लेते हैं। माउंट आबू प्रकृति की गोद में बसा शहर है और यहाँ जंगल-पहाडों के अतिरिक्त मंदिर भी काफी संख्या में है। और जब कोई मंदिर पहाड़ की चोटी पर हो और वहां जाना हो तब रोमांच और भी बढ जाता है।   
हम दस
हम दस
माउंट आबू शहर में प्रवेश करते समय, टोल नाके से पूर्व दायी तरफ  काफी ऊंचा पहाड़ नजर आता है और उस पहाड़ पर एक मंदिर का हल्का सा आभास होता है। पहाड की ऊंचाई का आप अंदाज इस तरह भी लगा सकते हो की यह शहर की दूसरी तरफ नक्की झील से दिखाई देता है। जब आप नक्की झील के पास कृत्रिम झरने के पास झील की उतर मुँह करके बैठते हो तो शहर की दूसरी तरफ का बेमाली पर्वत अपनी ऊंचाई का अहसास दिलाता नजर आता है। तब मन में यही इच्छा बलवती होती थी की कभी इस पर्वत पर भी जाना है। 
   दिनांक 10.01.2021 को रविवार था तो विद्यालय के बच्चों के साथ घूमने का विचार बनाया। सभी का मन बेमाली पर्वत का ही था। इस यात्रा में मेरे साथ शारीरिक शिक्षक अवधेशराज सिंह पंवार और बच्चों में कक्षा 12 के ललित राणा, कमलेश चौहान, सुनील पाल, प्रथम, विजेन्द्र सिंह तथा दिलीप कुमार और कक्षा 11 के दीपू पाण्डेय और यशपाल थे। आठ बच्चे और दो हम, कुल दस लोगों का समूह लगभग 11 बजे इस यात्रा पर निकला।  अवधेश सर के साथ यह पहली जंगल यात्रा थी, कुछ बच्चों के साथ पहले घूम चुके थे और कुछ बच्चों का साथ प्रथम बार था।
       
शिक्षक मित्र अवधेशराज सिंह पंवार के साथ

जंगल में घूमने का आनंद कुछ अलग ही होता है। चारों तरफ पेड़, चट्टान और कहीं-कहीं पानी का ठहराव आकर्षित करता है। पक्षियों का कलरव के साथ-साथ किसी नये जानवर के दर्शन की उत्कठा, तो वहीं किसी खतरनाक जानवर का अदृश्य सा डर भी होता है।

   जैसे ही हम जंगल में आगे बढे तो आगे एक पुरानी डामर की सड़क नजर आयी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ की आखिर यह सड़क यहाँ, और आगे कहां जाती है। वहाँ घूम रहे कुछ स्थानीय लोगों ने बताया की यह सड़क के होटल से आरम्भ होकर आगे एक मैदान तक जाती है। होटल में ठहरे लोग इधर घूमने आते हैं। यह बात तुरंत सत्य होती नजर आयी, क्योंकि आगे मैदान से कुछ लोग घूम कर वापस आ रहे थे। यहाँ से बेमाली पर्वत को देखना और भी रोचक लगा।  
नेपथ्य में बेमाली पर्वत
   एक ऊंचा पहाड़, हरा-भरा, अपना सीना ताने  खड़ा था। हमें इस पर्वत की हरियाली को पार करते हुये इसकी चोटी पर पहुंचना था। चित्र में देखने में यह प्रतीत हो सकता है की यह पर्वत तो छोटा सा है और नजदीक है। पर जो पहाड़ की यात्रा करते हैं उनको वास्तविकता का पता है। 
   कुछ समय पश्चात हम पर्वत के नीचे उपस्थित थे। यहाँ से पर्वत की ऊंचाई आरम्भ होती है। यहाँ से बड़े पेड़ खत्म हो जाते हैं और आगे झाड़ियां ही‌ मिलती हैं।
    हम जैसे -जैसे पहाड़ी पर चढते गये वैसे-वैसे थकान हावी होती गयी। बच्चे तो अकसर पहाडों पर घूमते रहते हैं, इसलिए वे शीघ्रता से ऊपर चढते गये लेकिन मैं और अवधेश जी सबसे पीछे थे। धीरे-धीरे, सुस्ताते हुये, आराम करते हुए हम आगे बढ रहे थे।
    बच्चे आगे एक चट्टान पर बैठे हमारा इंतजार कर रहे थे। यहाँ से शहर और पहाड़ियों का दृश्य बहुत मनोरम‌ नजर आ रहा था। अधिकांश बच्चे तो फोटोग्राफी में व्यस्त थे। कुछ देर आराम‌ करने के पश्चात, फोटोग्राफी की और फिर आगे की वैसी ही कठिन यात्रा आरम्भ हो गयी। पूरी यात्रा के दौरान ललित राणा का फोटोग्राफी कला देखने को मिली। 
एक-दो-तीन-चार ऐसे करते-करते मेरे सारे साथी पुनः आगे निकल गये। बच्चों का जो उत्साह था वह उन में थकान को हर रहा था।
लगभग एक घण्टे की पहाड़ की यात्रा करने पर हम चोटी पर पहुँचे।  
बेमाली माता मंदिर
यहाँ बेमाली माता का सफेद रंग का एक छोटा सा मंदिर है। जिसके आगे एक सफेद वर्ण की ध्वजा लहरा रही थी।  पास में दो-तीन और चट्टानें हैं जिन पर सरलता से जाया जा सकता है। उन सभी चट्टनों पर केसरिया ध्वज फहरा रहे थे‌। वहाँ फैला प्लास्टिक कचरा यह भी बता रहा था कि यहाँ काफी संख्या में लोग घूमने आते हैं। मुझे हमेशा से इस बात से रोष आता है की लोग जहाँ घूमने जाते हैं वहाँ कचरा फैला देते हैं जो की वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को नुकसान पहुंचाता है। इस विषय में हमारा एक विद्यार्थी सुनील पाल बहुत सक्रिय है। वह कचरा न फैलाने के प्रति बहुत सचेत रहता है, यहाँ फैले कचरे को भी उसने यथासंभव एकत्र कर बैग में भर लिया।
  मंदिर में सिर नवा कर कर हम अगली पहाड़ी पर पहुंचे‌। यहाँ से माउंट आबू शहर बहुत रमणीय नजर आता है। शहर कर अतिरिक्त नक्की झील और upper कोदरा डैम, lower कोदरा डैम भी नजर आते हैं।
   चारों तरफ हरी-भरी पहाड़ियों, एक तरफ फैली हल्की धुंध और ठण्डी हवा ने सारी थकान को पल भर में खत्म कर दिया। 
    फोटोग्राफी का दौर तो खैर साथ-साथ चलता ही रहा। चाय की इच्छा महसूस हुयी पर साथ लायी चाय अब तक ठण्डी हो चुकी थी। विजेन्द्र सिंह ने बताया की इस पहाड़ी पर एक छोटी सी गुफा है। हमने उस गुफा में बैठ कर नाश्ता किया‌। गुफा में एक चांदर पहले से ही बिछाई हुयी थी। विजेन्द्र सिंह ने बताया की लोग यहाँ रात को भी ठहरते हैं, यह उनके लिए व्यवस्था है, स्वयं विजेन्द्र सिंह भी यहाँ कई रातें बिता चुका है।
           हालांकि बेमाली माता जी के विषय में ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं हो पायी पर विद्यार्थी विजेन्द्र सिंह ने एक छोटी सी कहानी सुनाई वह यहाँ प्रस्तुत है। बेमाली माता विजेन्द्र सिंह की कुल माता है।
  एक बार एक चीता गाय को खा रहा था। तब बेमाली माता ने इस पर्वत से तीर छोड़ा जो नीचे चट्टान से टकराया और दूसरा तीर चीते के लगा और चीता वहीं मर गया। तब से बेमाली माता जी की पूजा होने लगी। जहाँ चीता मारा गया था वहाँ एक छोटा मंदिर बना है वह तीर भी सुरक्षित है जो चट्टान से टकराया था और वहाँ चीते के पंजों के निशान भी उपस्थित हैं। नीचे माउंट शहर में, टोल नाके के पास, छोटे मंदिर तो जाना संभव न था। वह फिर कभी।
    मुझे अक्सर प्राचीन स्थलों के पीछे छुपी कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता है। इसमें कितनी सत्यता होती है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जनास्था अवश्य होती है। यह लोगों की आस्था ही है जो एक ऊंचे पहाड़ पर मंदिर स्थापित किया जहाँ जाना ही दुर्गम है।

हम तीन बजे वहाँ से वापस चले। जहाँ इस पर्वत पर चढना जितना दुष्कर्म था वहीं उतरना उतना ही आसान था। उतरते वक्त ऐसा लग रहा था कहीं तीव्र गति के कारण पैर न फिसल जाये। हमारे कुछ साथी बहुत आगे चले गये थे। लेकिन मैं और कुछ अन्य विद्यार्थी सुरक्षा की दृष्टि से धीमे ही चल रहे थे और कुछ फोटोग्राफी के कारण समय लग रहा हैं।

   नीचे उतरने पर एक अलग ही सुकून था। ठण्डी हवा से सारी थकान खत्म हो गयी थी।
    बेमाली माता/पर्वत की यात्रा बहुत रोचक रही।
धन्यवाद।

- गुरप्रीत सिंह (व्याख्याता)
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- आबू पर्वत, सिरोही

11:00 AM घर से रवाना

12:30- पर्वत की चढाई
1:30 -  पर्वत पर पहुंचे
3:00 -  वापसी 
बायें से- कमलेश चौहान, प्रथम, गुरप्रीत सिंह, यशपाल, दीपू पाण्डेय, सुनील पाल



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