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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

चन्द्रावती- एक ऐतिहासिक स्थल

चन्द्रावती- एक ऐतिहासिक स्थल

22.02.2019 को आबू रोड़(ओर गांव में)  एक विवाह समारोह में जाना हुआ। इसी दौरान हमारे विद्यालय के पूर्व पुस्तकालय प्रभारी रणवीर सिंह चौधरी जी मिल गये। रणवीर जी आबू रोड़ के ही निवासी हैं। उनके साथ ऐतिहासिक स्थल चन्द्रावती देखने का सौभाग्य मिला।

           चन्द्रावती एक ऐतिहासिक स्थल है जो आबू रोड़ से लगभग पांच- छह किमी. दूर है। मेरा जहाँ भी जाना होता है, मेरी इच्छा होती है वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को देखने और समझने की, वहाँ के धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों को देखने की। चन्द्रावती तो एक ऐतिहासिक स्थल है उससे वंचित कैसे रहते। मेरे साथ शिक्षक मित्र श्यामसुंदर जी, हुकमचंद नामा जी भी थे।
           विशाल क्षेत्र में इस जगह का फैलाव है। जो की तारबंदी और झाड़ियों से घिरा हुआ है।
           यहाँ एक कलादीर्घा है, जिसमें चन्द्रावती की खुदाई में मिली प्राचीन मूर्तियाँ रखी गयी हैं। इनमें से कुछ मूर्तियों खण्डित हैं तो कुछ सही अवस्था में भी हैं।
           कहीं योद्धा का सिर तो है लेकिन धड़ नहीं है, कहीं धड़ तो मौजूद है लकिन सिर गायब है। कुबेर जी भी उपस्थित हैं लेकिन खाली हाथ।
            माँ सरस्वती आसन पर विराजमान है लेकिन हाथ में  खण्डित वीणा है। कहीं विष्णु जी अधूरे हैं, कहीं गणेश जी तो कही कीचक महाराज। सब कुछ अधूरा -अधूरा सा मौजूद है, लेकिन यह अधूरापन भी अपने समय को पूरा करता है, यही अधूरापन हमें इतिहास की जानकारी उपलब्ध करवाता है।




            जहाँ पर खुदाई हुयी थी, उस जगह पर तार बंदी करके उसे सुरक्षित रखा गया है, लेकिन वहाँ इतनी झाडियां आदि हैं‌ की अंदर जाना संभव ही नहीं, हाँ स्थानीय ग्रामीण ईंधन के लिए यहीं से लकड़ियाँ काट कार ले जाते हैं। उनके लिए जगह-जगह बिखरे इन प्राचीन भग्नावशेष का कोई महत्व नहीं है।
         इस तारबंदी के अंदर असंख्य प्राचीन‌ मंदिर, घर आदि के भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। कभी कितने हर्ष और उंगम से ये घर बने होंगे, कितनी आशा और उम्मीद के बसेरे रहे होंगे। आज अपने खण्डहर हो चुके अस्तित्व को निहारते ये मंदिर कभी न जाने कितने लोगों के आस्था के केन्द्र रहे होंगे, लोगों की मन्नतों को पूर्ण करने वाले आज ये स्वयं अपूर्ण हैं।

              चन्द्रावती के विषय में जो ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है उसके अनुसार इस स्थल की खोज सन् 1822 में कर्नल जेम्स टॉड ने की थी।
      पुरातत्व विभाग द्वारा लगाये गये एक शीला पट्ट के अनुसार - चन्द्रावती 11-12 वी शताब्दी ई. में परमारों राजाओं की राजधानी थी। इस वंश में यशोधवल एवं धारवर्ष प्रतापी शासक हुये। इस नगरी में बड़ी संख्या में शैव-वैष्णव और जैन मंदिरों और राजप्रसादों का निर्माण हुआ।  सन् 1303 ई. तक यह नगरी परमारों के अधिकार में रही, तत्पश्चात यहाँ देवड़ा चौहानों का शासन राज्य हो गया।  वर्ष 1405 ई. से सिरोही राज्य की स्थापना होने तक यह स्थल देवड़ा चौहानों की राजधानी रहा।
            दिल्ली-गुजरात के मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण इस समृद्धशाली नगरी चन्द्रावती को आक्रांताओं द्वारा अनेक बार लूटा गया तथा यहाँ स्थित मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया।  इन मंदिरों के शिल्प और वास्तुखण्डों को  चन्द्रावती के वास्तुदीर्घा में प्रदर्शित किया गया है। यहाँ के मंदिरों की स्थापत्य शैली और भव्यता का चित्रों सहित वर्णन सन् 1922 ई. में सुप्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टाॅड ने अपनी पुस्तक 'वेस्टर्न इण्डिया' में किया है।
         समय चक्र निरंतर चलता रहता है आज तो वैभवशाली है कल को वैभवहीन हो सकता है। शायद यही चन्द्रावती का भाग्य रहा है। अपने समय की एक वैभवशाली नगरी आज वैभवहीन है। 999 मंदिरों की नगरी तो स्वयं में वैभवशाली रही होगी लेकिन आज वे सब मंदिर अतीत हो गये, कुछ के अवशेष बाकी रहे हैं। वह भी टूट कर, जमीन पर,  गिर जाने के बाद।
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कलादीर्घा से एक चित्र


कलादीर्घा के अंदर भी कुछ जानकारी अलग-अलग शीर्षक  एकत्र की गयी है। जैसे 'लघु पुरावशेष'(Minor Object) में‌ लिखा है- विभिन्न प्रकार के लघु पुरावशेष जैसे पकी मिट्टी से बनी चूड़ियाँ एवं मनके, लोहे और तांबे से बने धातु के औजार, शीशे से निर्मित वस्तुओं के अवशेष एवं पकी मिट्टी से बनी मनुष्य और जानवरों‌ की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुयी हैं। इसके अलावा पकी मिट्टी से बनी अनेक कलात्मक वस्तुएँ भी प्राप्त हुयी हैं जिनको संभवत मनोरंजन हेतु प्रयुक्त किया जाता रहा होगा।

         अपने समय की एक ऐतिहासिक और शौर्यवान नगरी चन्द्रावती अपने भग्नावशेष के साथ आज भी जिंदा है। कभी यहाँ भी सब आबाद था लेकिन आज चारों तरफ सन्नाटा पसरा है, जहाँ कभी फूल खिलते थे वहाँ आज कंटीली झाड़ियां है। बिता समय कभी लौट कर तो नहीं आता, लेकिन हम उस समय को यादों में, वास्तु में समेट सकते हैं।
             ऐतिहासिक स्थल चन्द्रावती को आज संरक्षण की आवश्यक है, स्थानीय प्रशासन भी अगर सजग हो, ग्रामीण अगर सचेत हो तो यह स्थल पूर्णतः सुरक्षित रह सकता है।
बायें से- रमेश पुरोहित जी, रणवीर चौधरी जी, गुरप्रीत सिंह, हुकमचंद नामा, श्यामसुंदर जी।



            

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