रविवार का दिन था। बंटी अपने दोस्तों के साथ पार्क में खेल रहा था। तभी उसे मम्मी की आवाज सुनाई दी,
"बंटी, जल्दी यहां आओ।" 
वह भागा आया। 
"क्या है?"- उसने मम्मी से पूछा। 
मम्मी बोली, -"इस कमरे में एक मोटा सा चूहा है। उसे भगाओ। नहीं तो वह सारा सामान कुतर कर खराब कर देगा।" 
"ठीक है, मम्मी। मैं अभी अपने दोस्तों के साथ चूहे को भगाता हूं"- बंटी ने कहा। 
मम्मी दूसरे कमरे में गयी। बंटी ने अपने दोस्तों को बुला लिया। 
"क्या काम है?"-आते ही सोनू ने पूछा। 
बंटी ने सभी को चूहा पकङने की बात बताई। 
"चूहा"- दीपा घबरा गयी, "मुझे तो चूहे से बहुत डर लगता है।" 
बंटी ने कहा, "डर कैसा, हम अभी चूहे को यहां से भगा देंते हैं।" 
सभी दोस्त चूहे को भगाने को तैयार हो गये। चिंटू और दीपा ने झाङू उठा लिया, बंटी ने बैट, चिकी और सोनू ने डण्डे ले लिए। 
सभी कमरे में पहुंचे। उन्होंने अंदर से कमरा बंद कर के बल्ब जला लिया। 
"कहां है चूहा?।"- चिकी ने इधर-उधर देखा।
"उन थैलों के नीचे होगा,"-सोनू ने कमरे के कोने में रखे थैलों की तरफ इशारा किया, 
"मैं अभी देखता हूं।" सोनू और बंटी ने एक-एक कर थैले नीचे उतारे। 
आखिरी थैला हिलाते ही चूहा निकल कर भागा। 
"वह रहा।"- चिंटू ने जोर से झाङू चूहे पर दे मारा। 
चूहा भाग गया। झाङू सामने पङे फूलदान से टकराया। फूलदान टूट गया, पर फूलदान की किसे परवाह थी। चूहा भाग कर कोने में रखी कुर्सी के नीचे जा दुबका। चूहे को वहां देख बंटी ने अपना बैट घूमा कर मारा। बैट चूहे को लगने की बजाय कुर्सी से टकराया। कुर्सी की टांग टूट गयी। चूहा फिर भागा। वह दूसरे कोने में रखी मेज के नीचे जा दुबका। 
     बंटी चिल्लाया, -"इस बार बचना नहीं चाहिए।" चिकी ने जोर से अपना डण्डा घुमाकर मारा। डण्डा मेज से टकराया। मेज पर रखा लैंप नीचे गिर कर टूट गया। चूहा मेज के नीचे से निकल कर भागा। चिंटू और दीपा ने झाङूओं से उस पर हमला जर दिया। पर चूहा सही-सलामत पलंग के नीचे जा छिपा।
"अब क्या करें?"- चिक्की चिल्लाया। 
सोनू और चिंटू ने पलंग को कमरे के बीच में कर दिया। पलंग हिला तो चूहा दौङ कर कमरे में रखी बङी मेज की टांग से जा लगा।
   "चारों तरफ खङे हो जाओ।"- दीपा ने कहा। 
सोनू का डण्डा चला। चूहे की जगह डंडा मेज से टकराया। चूहा फिर निकल भागा। चूहे के भागते ही सब ने एक साथ उस पर हमला कर दिया। चूहा तो भाग निकला, पर दीपा का झाङू चिंटू के सिर में लगा। वह मेज से टकराया, तो मेज पर रखी घङी नीचे गिर कर टूट गयी। चूहा ऐसा भागा की किसी को दिखाई नहीं दिया। 
"चूहा किधर गया?"- चिंटू ने संभलते ही पूछा। 
पर चूहा ऐसा गायब हुआ की किसी को दिखाई न दिया। बंटी समेत सभी ने कमरे का सामान उलट-पुलट कर डाला। पूरा कमरा कबाङखाना सा लगने लगा, पर चूहा कहीं न दिखा। 
  एकाएक चिकी ने कहा, -"वह रहा चूहा।" 
  "कहाँ है?"- सब ने एक साथ पूछा। 
"उस बैग में।"- चिकी ने कमरे के दरवाजे के पास पङे बंटी के बस्ते की तरफ इशारा किया। 
  वहां चूहे की पूंछ दिखाई दे रही थी।
    "शी....चुप रहो"- बंटी ने कहा, "इसे आराम से पकङेंगे।" 
    सभी दोस्त धीरे से बस्ते की तरफ बढे बंटी ने दबे पांव जाकर पीछे से चूहे की पूंछ पकङ ली उस ने चूहे को हवा में लहराया। अचानक चूहा उछला। बंटी के हाथ से निकल कर वह सीधा दीपा के मुँह से जा टकराया। 
     "आ......।" चूहे के टकराते ही दीपा चीखी। 
चीख सुनकर बंटी की मम्मी भागी आयी। 
  "क्या हुआ?"-मम्मी बोली, "जल्दी दरवाजा खोलो।"
बंटी ने दरवाजा खोला। मम्मी अंदर आ गयी। मम्मी ने कमरे की हालत देखी, तो वह खङी रह गयी। पूरे कमरे का सामान बिखरा पङा था। 
"यह क्या है?"- मम्मी ने जोर से पूछा। 
"वह गया।"- सोनू चूहे को कमरे से बाहर भागते देख कर बोला। 
सारे बच्चे एक साथ बाहर चूहे के पीछे भागे। मम्मी कमरे का सामान देखती रह गयी। 
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   चंपक, अगस्त(द्वितीय) 2006 
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बहुत बढ़िया कहानियाँ. मनोरंजन और ज्ञान का अच्छा संगम
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