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रविवार, 1 अप्रैल 2012

मेरे विचार

                      नमस्कार

ब्लॉग के क्षेत्र में यह मेरा प्रथम कदम है। समस्त ब्लॉग पढने वाले पाठकों मेरा नमस्कार।
सर्वप्रथम प्रस्तुत ‘‘धर्म’’ पर है मेरे विचार एक कविता और लधुकथा के माध्यम से की वर्तमान में धर्म  का स्वरूप क्या है,और क्या होना चाहिए।
अगर  धर्म शब्द की व्याख्या की जाए तो यह शब्द जितना छोटा है इसकी व्याख्या उतनी ही बड़ी है। फिर भी संक्षेप में कुछ कहना हो तो ‘‘अहिंसा परम धर्म है।’’ अर्थात मन,वचन और कर्म से भी हिंसा नहीं करनी चाहिए,और ना ही हिंसा का समर्थन करना चाहिए।
कुछ शाब्दिक,तकनीकी गलतियां है,जो धीरे धीरे दूर होंगी।
मैं उन मित्रों का धन्यवाद करता हॅू,जिन्होने मेरी इस ब्लॉग में मदद की है।

पाठक मित्रों से उम्मीद है कि वो मार्ग दर्शक होंगं। प्रस्तुत रचनाओं पर अपने विचार जरूर दंे।
धन्यवाद।
                                                                                     गुरप्रीत सिंह
                                                                                        राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. काफी हद तक आपने ब्लॉग विकसित कर लिया है. बधाई!

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  2. जो धारण किया जाये वो धर्म है. आपके लेख में अंहिंसा को तो परम धर्म बताया है, जबकि बात सिर्फ धर्म की है. धर्मं के चक्कर से दूर ही रहो, क्यों की यही एक विवादित शब्द है जिसे सबने अपनी सुविधा के अनुसार प्रयोग किया है.

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  3. कोई भी व्यक्ति मंदिर ना जाने से नास्तिक नहीं हो जाता
    जो व्यक्ति परमेश्वर द्वारा रचित जगत के प्राणियों की समुचित देखभाल तथा रक्षा करता है वह परम भक्त है। भाषा भी लगभग ठीक है। बधाई !
    शरद कुमार श्रीवास्तव

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