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शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

'धर्म'

                'धर्म'

उन्होँने डाक्टर को समझाते-धमकाते हुए कहा,- "आप इन दंगोँ मेँ घायल सिर्फ अपने धर्म के लोगोँ का ही उपचार करोगे।"

"क्योँ?" डाक्टर ने आश्चर्य से पूछा।

"इन लोगोँ ने हमारे धर्मस्थलोँ को क्षति पहुँचाई है, ये हमारे धर्म के विरोधी हैँ।

"डाक्टर ने निर्भयता,-"इन्होँने तो मात्र मिट्टी के भवनोँ को ध्वस्त किया है, आपने तो मानवता को ही ध्वस्त कर दिया। चिकित्सक का धर्म सिर्फ मानवता है। और इनका उपचार करना मेरा धर्म है। आप धर्मभ्रष्ट हो सकते हैँ, पर मैँ अपने धर्म से भ्रष्ट नहीँ होऊँगा।"

        
                                              

योग्य उम्मीदवार

           योग्य  उम्मीदवार

 राजा ने अपने राज्य मेँ घोषणा करवाई कि प्रशासन संचालन हेतु दस योग्य युवको की आवश्यकता है। तय समय पर अनेक युवक पहुँचे। विभिन्न परीक्षाओँ से गुजरने के पश्चात दस प्रतिभाशाली युवकोँ का चयन कर लिया गया।

 रानी ने जब सूची देखी तो हैरान रह गई। तुरंत राजा को बुलाया।
 रानी ने कहा, -"राजन, यह क्या, इस सूची मेँ मेरे किसी भी रिश्तेदार का नाम तक नहीँ।"
 "रानी, हमने केवल उच्च प्रतिभाशाली युवकोँ का ही चयन किया है।"
 "हम कुछ नहीँ जानते, हमारे तीन रिश्तेदारोँ को तो लेना ही होगा।"
 रानी की जिद्द के आगे राजा झुक गए। तुरंत मंत्री को बुलाया।
 राजा ने कहा,-"मंत्रीवर, सूची मेँ रानी जी के तीन रिश्तेदारोँ के नाम शामिल किए जाएँ।"
 "पर राजन......" मंत्री ने प्रतिवाद किया।
 "राज आज्ञा"
 मँत्री ने तुरंत समर्थन मेँ सिर हिलाया।
 राजा ने कहा,-"जब सूची मेँ संशोधन कर रहो तो हमारे दो परिचितोँ का नाम भी शामिल कर लो।"
 "जी महाराज"-कह कर मंत्री ने अपने परिचितोँ के नाम शामिल करने की योजना बना ली। अब पूणर्त: संशोधित सूची से सभी संतुष्ट थे॥

 'साहित्य अभियान'(छत्तीसगढ) मेँ प्रकाशित। 


जिंदगी

    जिंदगी

हँसती, मुस्कुराती
मंद पवन सी गुनगुनाती
अच्छी लगती है जिंदगी।

दुखोँ से भरी, गहरी खाई सी
अनिश्चिँताओँ से उलझी हुई
चुनौती है जिँदगी।

धूप-छांव सी, पक्ष-प्रतिपक्ष सी,
बादल सी, क्षण-क्षण परिवर्तित
रंग बदलती है जिँदगी।

अर्थ, परिभाषाओँ से बाहर
हवा सी, जल सी,
बंद मुट्ठी से फिसल जाती है जिँदगी।

अच्छी हो या बुरी
याद बन लबोँ पे
मुस्कुराती है जिँदगी।।

 -त्रिवाहिनी (दिस.-2011), हरियाणा से प्रकाशित।

जीवन साथी

                         जीवन साथी

श्रीमान जी आज अत्यधिक प्रसन्न नजर आ रहे थे, आते भी क्योँ ना, आखिर उनके इकलौते पुत्र के रिश्ते हेतु मेहमान जो आए हुए थे। इकलौता पुत्र वो भी महानगर मेँ सरकारी चिकित्सक।
औपचारिकता के पश्चात मेहमान महोदय ने कहा,-"आपने हमारी पुत्री को तो देखा ही है।"
श्रीमान जी ने तुरंत कहा,-"हां, हां, सुंदर है, सुशील है।"
तभी अंदर से श्रीमती जी की आवाज आई।
   "मैँ अभी आया।"-कह कर श्रीमान जी अंदर चले गए।
   "क्या बात है ?"- श्रीमान जी ने श्रीमती जी से पूछा।
   "जल्दी हाँ मत कर देना।"- श्रीमती जी ने कहा,-"मेरे मायके से फोन आया था, लङकी का बाप सरकारी पद पर है, उम्मीद है खूब दहेज देँगे।"
   "अरे, तुम चिँता मत करो"-श्रीमान जी ने कहा,-"मै बिना दहेज शादी करने वाला नहीँ।"
दोनोँ के चेहरोँ पर मुस्कान नृत्य कर उठी।
श्रीमान जी मेहमानोँ के पास आकर बैठ गए।
श्रीमान जी ने कहा,-"कल ही एक जगह से रिश्ता आया था, लङकी तो सुंदर थी,पर.......।"
तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी।
   "मै देखता हूँ, कौन है ?"-कह कर श्रीमान जी ने दरवाजा खोला, सामने उनका पुत्र खङा था। साथ मेँ एक नवपरिणिता थी।
   "नमस्ते पिताजी।"-पुत्र ने कहा।
   "अरे! तुम" श्रीमान जी ने कहा,-"अचानक कैसे आना हुआ ? और ये साथ मेँ कौन है।"
   "पिताजी, मैने शादी कर ली।"-पुत्र ने कहा।
   "क्या ?" श्रीमान जी किंकर्तव्यविमूढ।
   "आपको दहेज चाहिए था, पर मुझे एक अच्छा जीवन साथी।"-पुत्र ने कहा,-"प्रश्न मेरे जीवन का था, अत: निणर्य भी स्वयं ही ले लिया। मुझे धन की चाहत नहीँ। एक समझदार जीवन साथी धन से कहीँ अधिक महत्वपूर्ण होता है।"
इतना कह कर पुत्र व पुत्रवधु घर मेँ प्रवेश कर गए।
   -हम सब साथ साथ ( जु.-अग.-2012) नई दिल्ली से प्रकाशित।

याद

                          याद

जब-जब मैँ उदास होता हूँ,
तब-तब याद आते हैँ,
वो हसीन पल
जो तुम्हारे साथ बीते थे।
आँखोँ मेँ तैर जाती है
तुम्हारी हवा सी चंचल छवि।

तब बरबस होठोँ पर थिरक उठती है
 स्निग्ध मुस्कान
उठ जाते हैँ दुख के बादल।

तुम पास नहीँ हो
पर तुम्हारी याद
सीने से लगी रहती है
जो हर दुख मेँ देती है
एक मधुर सांत्वना।।

अविराम साहित्यिकी(दिस.-2011) हरिद्वार, उत्तराखण्ड से प्रकाशित।

महात्मा गांधी


          महात्मा गांधी

पावन धरा पर जिसने जन्म लिया,
भारत माँ का था वो पुत्र महान।
प्यार से कहते बापु जिनको 
दिया राष्ट्रपिता का सम्मान।।
बापु का संदेश अहिंसा,
और सत्याग्रह का ज्ञान।
स्वदेशी का प्रयोग सिखाया,
और सिखाया देना क्षमा दान।।
वर्गभेद के बंधन तोङे,
सिखाया करना स्वकर्म।
मानव-मानव की सेवा करे,
यही है सबसे बङा धर्म।।
बापु के संघर्ष बल ही,
हुए हम आजाद।
तभी तो जन-जन करबध्द होकर,
करता है बापु को याद।।
विश्व मेँ जिनका आज भी,
गूँज रहा जयगान।
1948 को विदा हुए वो,
कहकर हे ! राम।।

-नई दिशा ( अक्टु.-2011) पश्चमी बंगाल से प्रकाशित।

प्यारी बहना

  प्यारी बहना

मेरी प्यारी नन्हीँ बहना
है वो सारे घर का गहना।

सुंदर मुखङा, गोल-मटोल
चंचल आँखे लगती प्यारी,
ना वो रुकती, ना वो थकती
बातेँ करती ढेर सारी।।
  
उछल कूद कर शोर मचाती
स्कूल से जाने है कतराती,
गुस्से मेँ कुछ कह दो उसको 
पल भर मेँ वो रूठ भी जाती।।

सारा दिन वो रहे खेलती
चाँद भी लगता उसे गुब्बारा,
"मुझे वो लाकर दे दो भइया
नहीँ मांगुगी फिर मेँ दोबारा।।"

ना वो लङती, ना झगङती
मस्ती उस पर रहती छाई,
उसकी बातोँ से घर भी महके
संग खुशियाँ है लेकर आई।।

सदा खुश तुम यूँ ही रहना,
मेरी प्यारी नन्ही बहना।।
               ---गुरप्रीत सिँह.